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अवबाध-१३
अथवा मैथुनक्रिया में वीर्य का क्षय किया जाना ही अब्रह्मचर्य है। यदि कोई व्यक्ति ऊर्ध्वरेता होकर उसे ओजरूप में परिणत कर लेता है तो वह उसके लिए उतना ही लाभप्रद बन जाता है। ओज केवल वीर्य का ही सार नहीं होता, वह सब धातुओं का सार होता है।
चिकित्सा विज्ञान मानता है कि प्रत्येक व्यक्ति में यौन-हार्मोन्स (SexHormones) का स्राव होता रहता है। बचपन में पीनियल ग्रन्थि की सक्रियता के कारण उसे रोक लिया जाता है। जब बालक बचपन से तरुण अवस्था को प्राप्त होता है तब पीनियल ग्रन्थि निष्क्रिय हो जाती है, यौनहार्मोन्स के स्राव, उत्तेजना के स्राव नीचे आने लगते हैं। वे हार्मोन्स गोनड (Gonad) में आकर उसे उत्तेजित करते हैं, कामग्रन्थि को प्रभावित करते हैं। उसका परिणाम होता है कामवासना का उभरना। - गौतमकुलक में कहा गया है- 'मूढा नरा कामपरा हवंति'-मूढ व्यक्ति कामपरायण होते हैं। जो व्यक्ति कामभोगों को सुख मानकर उनके पीछे रात-दिन दौड़ते हैं वे व्यक्ति शास्त्रीय भाषा में मूढ कहलाते हैं। काम क्या है? इस विषय में कहा गया- 'मोहोदयाभिभूतैः सत्त्वैः काम्यन्ते शब्द-रसरूप-गन्ध-स्पर्शा इति कामाः'--'मोह के उदय से अभिभूत प्राणियों द्वारा शब्द, रस, रूप, गन्ध, और स्पर्श-इन इन्द्रियविषयों के उपभोग की कामना की जाए वह काम है।'
मनुष्य कामनाओं के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। समस्त इन्द्रियों-स्पर्श, रस, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र के विषयों का आकर्षण उसे अपनी ओर खींच रहा है। फिर भी सहज ही मन में एक प्रश्न उठता है कि भीतर में ऐसा कौनसा घटक तत्त्व विद्यमान है जिसकी प्रेरणा से मनुष्य शब्दादिक विषयों में प्रवृत्त होता है, मन के कथनानुसार कार्य करता है। इस प्रश्न का उत्तर कर्मशास्त्रीय और शरीरशास्त्रीय-दोनों भाषाओं में खोजा जा सकता है। कर्मशास्त्रीय भाषा के अनुसार वह सब मोहकर्म की प्रबलता के कारण होता है। वही सबको संचालित कर रहा है। उसके तीन हेत होते हैंकामराग, स्नेहराग तथा दृष्टिराग। व्यक्ति आंखों से किसी के प्रिय-अप्रिय रूप को निहारता है। प्रिय रूप को देखते ही व्यक्ति में काम का संवेग जाग जाता है। इसलिए यह कहना संगत है कि दृष्टि का रूप के साथ गहरा संबन्ध जुड़ा हुआ है। तत्त्वजिज्ञासा में बहुधा चर्चा की जाती है कि पांच इन्द्रियों में कामी इन्द्रियां कौन-सी और भोगी इन्द्रियां कौन-सी? समाधान की भाषा में चक्षु और श्रोत्रेन्द्रिय को कामी इन्द्रियां माना गया है, क्योंकि ये दोनों इन्द्रियां कामोत्पत्ति में मुख्यतया सहायक बनती हैं। शेष तीन
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