________________
अस्तेय प्रकरण
१२.अवबोध
इस संसार में जीने वाला व्यक्ति द्वन्द्वात्मक जीवन जीता है। एक ओर असीम कामनाएं मक्खियों की भांति भिनभिना रही हैं, दूसरी ओर भीतर में तृष्णा की ज्वाला भभक रही है। व्यक्ति एक कामना को पूरी करता है, दूसरी कामना तत्काल सामने आ जाती है। एक के बाद एक इच्छाओं का चक्र चलता रहता है। जीवनभर मनुष्य कामनाओं की पूर्ति करता है, फिर भी तृष्णा का महासमुद्र कभी तृप्त नहीं होता। वह सदा अपूर्ण का अपूर्ण रहता है। भगवान महावीर के शब्दों में– 'इच्छा उ आगाससमा अणंतिया'-इच्छाएं आकाश के समान अनन्त हैं। उनका कभी अन्त नहीं होता। तृष्णा की ज्वाला भी लाभ के जल से कभी उपशान्त होने वाली नहीं है। वह और अधिक विकराल बनने वाली है।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति करनी होती है, किन्तु अनपेक्षित कामनाओं को पूरा करना आवश्यक नहीं है। प्रथम दृष्टि में मनुष्य के लिए भोजन, पानी, वस्त्र और मकान आदि आवश्यक हैं, किन्तु सुख-सुविधा, ऐश्वर्य-विलासिता के साधनों को जुटाना अनिवार्य नहीं है। जब जीवनोपयोगी अत्यन्त अनिवार्य वस्तुओं का अभाव होता है अथवा भीतर में तृष्णा का ज्वार उमड़ता है तब व्यक्ति उनको पाने के लिए अनर्थ कार्यों में प्रवृत्त होता है। अभाव की स्थिति में गरीबी, दरिद्रता, भुखमरी और बेरोजगारी पनपती है। अत्यधिक तृष्णा की स्थिति में पूंजीपति, धनकुबेर बनने की कामना जागती है। पेट भरने के लिए किसी को चोरी जैसा जघन्य कार्य करना पड़े, यह उसकी विवशता हो सकती है, पर अत्यधिक संग्रह के लिए चोरी जैसा अकरणीय कार्य करना पड़े, यह विवशता कैसे हो सकती है? ___ अर्थशास्त्र का एक नियम है-जब वस्तु की अधिकता होती है तब मांग (Demand) कम होती है और खपत कम होती है। जब वस्तु का अभाव होता है तब मांग अधिक होती है और खपत अधिक होती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org