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अवबोध- ११
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इस संसार में उन्हीं लोगों को याद किया जाता है जिनके पास सत्य का बल होता है, उन्हीं लोगों को सम्मान दिया जाता है जो जीवनभर सत्य की राह पर चलते हैं, क्योंकि सत्य में हजार हाथियों के बराबर बल होता है। सत्यवादी कभी झूठी प्रतिज्ञा नहीं करते। प्रतिज्ञा का पालन करना ही उनकी महानता का लक्षण है। इसलिए वाल्मीकि रामायण में
कहा गया
' नहि प्रतिज्ञां कुर्वन्ति वितथां सत्यवादिनः । लक्षणं हि महत्त्वस्य प्रतिज्ञापरिपालनम् ।।'
राजा हरिश्चन्द्र सत्यप्रण निभाने के कारण सत्यवादी कहलाए । राजा बसु अपनी असत्यवादिता के कारण पथभ्रष्ट हुए । कमल सेठ सत्य का पक्ष लेकर सत्यवादी के रूप में प्रसिद्ध हुए । सत्यवादिता के ऐसे अनेक उदाहरणों का साक्ष्य है- भारतीय और जैन इतिहास ।
जो सत्यवादी होता है वह दूसरों के लिए आदर्श होता है, अनुकरणीय होता है। उसमें अनेक गुणों का समावेश होता है। जैसा कि भक्तपरिज्ञा में कहा गया
'विसस्सणिज्जो माया व होइ, पुज्जो गुरु व लोअस्स । सयणुव्व सच्चवाई, पुरिसो सव्वस्स पियो होई ।।'
सत्यवादी माता की तरह विश्वसनीय होता है, गुरु की तरह लोगों के लिए पूजनीय होता है तथा स्वजन की तरह वह सभी को प्रिय होता है।
व्यक्ति सत्य के पथ पर चलना चाहता है, किन्तु असत्य की घेराबन्दी उसे अपने पथ से च्युत कर देती है । भीतर में राग-द्वेष की आग सुलग रही है, जो प्रतिपल सत्य को भस्म कर रही है। उस स्थिति में सत्य की साधना कैसे हो सकती है ?
दसवैकालिकसूत्र में असत्य बोलने के चार कारण बतलाए गए हैं'से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा - क्रोध से, लोभ से, भय से, और हास्य से।
क्रोध में व्यक्ति को सत्य-असत्य का विवेक नहीं रहता। उस समय वह प्रायः झूठ ही बोलता है। लोभ भी असत्य - आचरण का बहुत बड़ा निमित्त बनता है। गलत कार्य करके उसको छिपाने का मनोभाव, कहीं किसी को पता न लग जाए, इस भय से भी मनुष्य असत्य बोलता है। झूठ बोलने से पूर्व भय, झूठ बोलते समय भी भय और झूठ बोलने के पश्चात् भी
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