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अवबाध-१०
१२५ जब आपस में मिलते हैं तब घटना घटित होती है। इस प्रकार हिंसा के अनेक तत्त्व मिलकर हिंसा को जन्म देते हैं। ___ अहिंसा के विकास के लिए मानवीय मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना अति आवश्यक है। उसके बिना हिंसा को उपशान्त नहीं किया जा सकता। उसके लिए जरूरी है कि मनुष्य अपने आवेगों-संवेगों पर नियंत्रण करने का अभ्यास करे, अपने परिवेश और वातावरण को स्वच्छ बनाने का प्रयास करे तथा भावात्मक परिवर्तन लाने के लिए ध्यान और जागरूकता का विकास करे। उन प्रयासों से हिंसा भी कम होगी और अहिंसा को भी तेजस्वी बनाया जा सकेगा। ये सारे प्रयत्न अहिंसा के मूल्यांकन के लिए पारसमणि के समान सिद्ध होंगे।
कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने अहिंसा को अमृत से उपमित करते हए कहा- 'अहिंसैव हि संसारमरावमृतसारणिः' -इस संसाररूपी मरुस्थली में अहिंसा ही अमृत का झरना है। गौतमऋषि कहते हैं- 'अमयं अहिंसा'---अर्थात् अहिंसा अमृत है। वह अहिंसा ही शुष्क मानस को सरसब्ज बना सकती है और वह अहिंसारूप अमृत हिंसा से अमरत्व प्रदान कर सकता है। जिसके जीवन में अहिंसा का आचरण होता है वह अनायास ही शान्ति को पा लेता है। अहिंसा और शान्ति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों में भेदरेखा नहीं खींची जा सकती। अहिंसा के लिए शान्ति और शान्ति के लिए अहिंसा अनिवार्य है।
पातंजलयोगदर्शन में कहा गया- 'अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरपरित्यागः।' अहिंसा की प्रतिष्ठा होने पर साधक के निकटस्थ प्राणियों में परस्पर वैर नहीं रहता।
प्रस्तुत प्रकरण का प्रतिपाद्य है• आत्मतुला की कसौटी पर सब प्राणियों को देखना। . विधेयात्मक भावों में जीने का अभ्यास तथा निषेधात्मक भावों
का परिहार। • अहिंसा के विकास के लिए करुणा, मैत्री, सौहार्द तथा शान्ति
का विकास। • मानवीय मस्तिष्क तथा रसायनों के परिवर्तन के लिए अहिंसा
का शिक्षण-प्रशिक्षण। • शाश्वत मूल्यों को आत्मसात् करना और शाश्वत में अशाश्वत
का आरोपण न करना।
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