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सिन्दूरप्रकर का, आकाश तारों का, स्वर्ग कल्पवृक्षों का, सरोवर कमलों का और समुद्र नर्मल जल का आधारस्थल है वैसे ही चतुर्विध धर्मसंघ ज्ञान-दर्शनवारित्र आदि अनेक गुणों का स्थान है। वह संघ ही प्राणियों में संसार को त्यागने की भावना को उत्पन्न करता है, मुक्ति की साधना करने वालों को साधना का अवकाश देता है। ऐसे कल्याणस्वरूप संघ की भक्ति करना, उपासना करना सभी का परम कर्तव्य है।
फलश्रुति के रूप में प्रस्तुत प्रकरण का सारांश है• जिस संघ की महिमा का वर्णन करने में बृहस्पति की वाणी भी
असमर्थ है, वह पापहारी संघ सत्पुरुषों के चरणन्यास से पवित्र बना हुआ है। संघभक्ति का मुख्य फल है-अर्हत् आदि पदवी की प्राप्ति और प्रासंगिक फल है-चक्रवर्तित्व, इन्द्रत्व आदि पदों की प्राप्ति। संघ की भक्ति से भौतिक लाभों के अतिरिक्त आध्यात्मिक लाभ भी अनेक हैं। उनमें मुख्य हैं-रत्नत्रयी की साधना, वीतरागता की उपलब्धि तथा समस्त कर्मों से मुक्ति इत्यादि। संघ अनेक गुणों का आलय है, इसलिए वह अनुपमेय और अतुलनीय है।
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