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________________ अवबोध-६ १०५ अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, निःसंगता, गुरुभक्ति, तप और ज्ञान-ये आठ सत्पुष्प कहलाते हैं। उनसे जिनभगवान की पूजा की जा सकती है। उपरोक्त श्लोक का संवादी एक अन्य श्लोक भी पद्मपुराण में मिलता है। उस श्लोक में कहा गया है'अहिंसा प्रथमं पुष्पं, द्वितीयं करणग्रहः। तृतीयकं भूतदया, चतुर्थं शान्तिरेव च।। शमस्तु पञ्चमं पुष्पं, दमः षष्ठं च सप्तमम्। ध्यानं सत्यं चाष्टमं च, होतैस्तुष्यति केशवः।।' विष्णु भगवान आठ फूलों से पूजित होने पर प्रसन्न होते हैं। वे आठ फूल हैं-अहिंसा, इन्द्रियदमन, जीवदया, क्षमा, शम, दम, ध्यान और सत्य। संभवतः ग्रन्थकार का आशय भी उन्हीं भावपुष्पों से रहा हो। जो व्यक्ति उन भावपुष्पों से तीर्थंकरों की अर्चा करता है वह स्वयं अर्चित, वन्दित और स्तुत्य होकर कृतकर्मों को क्षीण कर देता है। प्रस्तुत प्रकरण का प्रतिपाद्य है. अर्हतों की अर्चा आत्मविशोधि के लिए की जाती है। आत्मविशोधि का परिणाम है-निर्वाण।। भौतिक सिद्धियों के उद्देश्य से भगवान की अर्चा-पूजा नहीं होती। यदि होती है तो वह वास्तव में अर्चा-पूजा नहीं है। यदि किसी को पूजा-अर्चना के द्वारा भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है तो मानना चाहिए कि वे तो मार्ग में पड़ने वाले पुण्य-जन्य पड़ाव हैं। भगवान की पूजा करने का तात्पर्य है-भावपूजा, गुणोत्कीर्तन, स्तवना आदि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003217
Book TitleSindurprakar
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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