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मनुष्य-जन्म की दुर्लभता
४.अवबोध
शब्दजगत् में दो प्रकार के शब्द प्रचलित हैं-दुर्लभ और सुलभ। दुर्लभ वह होता है जिसका मिलना कठिन है। सुलभ वह होता है जिसका मिलना सरल है। वस्तुजगत् अथवा प्राणिजगत् में दुर्लभ क्या है अथवा सुलभ क्या है? इसे बताना कठिन है। यह सब द्रव्य-क्षेत्र-काल और भावसापेक्ष है। एकान्ततः कोई भी वस्तु न दुर्लभ होती है और न सुलभ। सापेक्षता के पेरामीटर से ही दुर्लभता और सुलभता का ज्ञान किया जाता है। सभी धर्मों में ज्ञानीपुरुषों ने मनुष्य-जन्म की दुर्लभता को स्वीकार किया है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया-'माणुस्सं खु सुदुल्लहं'-मनुष्यजन्म का मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। भगवान महावीर ने कहा
'चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो । __माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ।।' प्राणी के लिए चार तत्त्व दुर्लभ हैं- मनुष्य का जन्म, श्रुति, श्रद्धा और संयम में पराक्रम।
इसी प्रकार मनुष्यत्व की दुर्लभता को दर्शाते हुए शंकराचार्य ने विवेकचूडामणि में लिखा
'दुर्लभं त्रयमेवैतत्, देवानुग्रहहेतुकम्।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं, महापुरुषसंश्रयः।।' मनुष्यत्व की प्राप्ति, मुमुक्षुत्व और महापुरुषों का संपर्क-इन तीनों का मिलना दुर्लभ है। ये सब देवानुग्रह से ही मिलते हैं। __ इस दुर्लभता के विषय में सहज ही कुछेक प्रश्न समाधान मांगते हैं• क्या वस्तुतः मनुष्य-जन्म का मिलना दुर्लभ है? उस दुर्लभता का
आधार क्या है?
यदि मनुष्य-जन्म दुर्लभ है तो इतनी जनसंख्या क्यों? • क्या मनुष्य-जन्म पाना दुर्लभ है अथवा उसको सार्थक बनाना
दुर्लभ है? यदि गहराई से चिन्तन किया जाए तो निश्चित ही मनुष्य का जन्म
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