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अवबोध-३ • धर्म काम और अर्थ का परिष्कार अथवा शुद्धीकरण करता है,
इसलिए पुरुषार्थत्रयी में धर्म को श्रेष्ठ कहा गया है। • धर्म के बिना अर्थ और काम नहीं होने का तात्पर्य है-उनका
शुद्धीकरण और परिष्कार नहीं होना। धर्म के बिना काम का परिष्कार नहीं होता, काम के परिष्कार के बिना अर्थ का
परिष्कार नहीं होता। तीनों का अन्योन्याश्रित संबंध है। • स्वस्थ-समाज की संरचना में धर्म-नियन्त्रित काम-अर्थ की आवृत्ति
महत्त्वपूर्ण है। • नैतिक मूल्यों अथवा सामाजिक आचार-व्यवहार की प्रतिष्ठा के लिए धर्म का सर्वोपरि मूल्य है।
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