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वैशाली
___ --आचार्य चतुरसेन शास्त्री
हिन्दी-साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान् आचार्य चतुरसेन शास्त्री के यशस्वी-उपन्यास 'वैशाली की नगरवधू' के अंत में 'भूमि' शीर्षक के अंतर्गत उपन्यास में आये हुये नगरों एवं पात्रों के सम्बन्ध में जो विवरण दिया है, उसी में भगवान् महावीर की जन्मभूमि वैशाली के बारे में भी ऐतिहासिक जानकारी दी है। वह जानकारी इस आलेख के रूप में यहाँ दी जा रही है। इससे जैनतर-साहित्यकारों के मन में वैशाली' नगरी की जो छवि रही है, उसे जानने-समझने का एक अवसर मिल सकेगा।
-सम्पादक
वैशाली
लिच्छवियों की राजधानी वैशाली अथवा त्रिशला अत्यन्त प्राचीनकाल में इक्ष्वाकु के पुत्र अथवा भाई नभाग के पुत्र 'विशाल राजा ने बसाई थी। ऐसा उल्लेख प्राचीन हिन्दू-ग्रन्थों में मिलता है। पुराणों के आधार पर विशाल के राजवंश को दशरथ के समकालीन प्रमति तक खींचा जा सकता है, परन्तु विशाल के राजवंश का अंत किसप्रकार हुआ और वह लिच्छवियों के गणतन्त्र की राजधानी किसप्रकार बनी? —इस सम्बन्ध में निश्चितरूप में कुछ नहीं कहा जा सकता। वैशाली और लिच्छवियों के सम्बन्ध में बुद्ध ने बहुत से प्रशंसात्मक-उद्गार प्रकट किए हैं, जो कि बौद्ध-पालि-ग्रन्थों में संग्रहीत हैं । यह नगरी महावीर की जन्मभूमि भी है। बौद्ध-ग्रन्थों में महावीर को 'अरहा नायपत्ते भगवा वेसालिए' कहा है। अन्य-ग्रन्थों में भी महावीर को 'वैशालिक' कहा गया है।
___ 'भगवतीसूत्र' की टीका में अभयदेव ने वैशालिक' का अर्थ ही महावीर किया है। इसप्रकार इस नगरी के नाम पर ही महावीर का नाम वैशालिक प्रसिद्ध हो गया। ऐसा मालूम होता है कि वैशाली नगरी में उस समय 'कुण्ड-ग्राम' और 'वाणिज्य-ग्राम' -इन दो नगरों का समावेश भी था। आज भी ये दोनों गाँव 'बानिया वसुकुण्ड' नाम से आबाद हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वैशाली का विस्तार धीरे-धीरे बढ़ता गया। बौद्ध-ग्रन्थों से पता चलता है कि जनसंख्या बढ़ने से तीन बार कई गाँवों को सम्मिलित करके इस नगरी को विशाल किया गया, जिससे उसका नाम 'वैशाली' पड़ा।
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प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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