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________________ भगवान् महावीर : वैशाली की दिव्य विभूति -महोपाध्याय पं. बलदेव उपाध्याय आज कई लोगों को वैशाली को भगवान् महावीर की जन्मभूमि मानने में आपत्ति हो रही है। यह भी मानने को तैयार नहीं हैं कि 'कुण्डग्राम' या 'क्षत्रिय कुण्डग्राम' विशाल वैशाली का ही अंग था। उन्हें वर्तमान-विवाद से परे एक सुप्रतिष्ठित गवेषी - लेखक के दशकों पूर्व लिखे इस आलेख को मननपूर्वक पढ़ना चाहिये, जिसमें उक्त दोनों तथ्यों की सुदृढ़ता साथ पुष्टि की गयी है । तथा सत्य को स्वीकार करने में वैयक्तिक- अहं को छोड़कर आगे आना चाहिये । - सम्पादक - वैशाली युगान्तकरकारिणी - नगरी है। इसकी गणना भारत की ही प्रधान नगरियों में नहीं की जाती, प्रत्युत् संसार की कतिपय-नगरियों में यह प्रमुख है— उन नगरियों में, जहाँ से धर्म की दिव्य-ज्योति ने दम्भ तथा कपट के घने काले अन्धकार को दूरकर विश्व के प्राणियों के सामने मंगलमय प्रभात का उदय प्रस्तुत किया; जहाँ से परस्पर-1 र-विवाद करनेवाले, कणमात्र के लिये अपने बन्धुजनों के प्रिय-प्राण हरण करनेवाले क्रूर - मानवों के सामने पवित्र भ्रातृभाव की शिक्षा दी गई, जहाँ से 'अहिंसा परमो धर्मः' का मन्त्र संसार के कल्याण के लिये उच्चारित किया गया । पाश्चात्य - इतिहास उन नगरों की गौरव-‍ व- गाथा गाने में तनिक भी श्रान्त नहीं होता, जिनमें प्राणियों के रक्त की धारा पानी के समान बही, और जिसे वह भाग्य फेरनेवाले युद्धों का रंगस्थल बतलाता है । परन्तु भारत के इस पवित्र देश में बे नगर हमारे हृदय-पट पर अपना प्रभाव जमाये हुये हैं, जिन्हें किसी धार्मिक - नेता ने अपने जन्म से पवित्र बनाया, तथा अपने उपदेशों का वैभवशाली - नगर प्रस्तुत किया । वैशाली ऐसी नगरियों में अन्यतम है । इसे सही जैनधर्म के संशोधक तथा प्रचारक महावीर वर्द्धमान की जन्मभूमि होने का विशेष गौरव प्राप्त है । बौद्धधर्मानुयायियों के हृदय में 'कपिलवस्तु' तथा 'रुम्मिनदेई' के नाम सुनकर जो श्रद्धा और आदर का भाव जन्मता है, जैनमतावलम्बियों हृदय में ठीक वही भाव 'वैशाली' या 'कुण्डग्राम' के नाम सुनने से उत्पन्न होता है । वैशाली के इतिहास में बड़े-बड़े परिवर्तन हुये । उसने बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल देखी । कभी वहाँ की राजसभा में मन्त्रियों की परिषद् जुटती थी; तो कभी वहाँ के संस्थागार में प्रजावर्ग के प्रतिनिधि राज्यकार्य के संचालन के लिये जुटते थे। कभी वंशानुगत - राजा प्रजाओं पर शासन करता था, तो कभी बहुमत से चुना गया 'राजा' - नामधारी अध्यक्ष अपने I के 0090 Jain Education International - प्राकृतविद्या जनवरी - जून 2002 वैशालिक महावीर - विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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