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________________ (सम्पादकीय क्या वर्धमान महावीर की जन्मभूमि "वैशाली-कुण्डपुर' नहीं है? ___-डॉ. सुदीप जैन 'भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे' – (आचार्य पूज्यपाद, निर्वाणभक्ति, 4) भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी जैसी सुप्रतिष्ठित एवं निर्विवाद संस्था ने भारत के |. दिगम्बर-जैनतीर्थों के बारे में व्यापक अनुसंधान और समर्पणपूर्वक प्रामाणिक रीति से आजतक कार्य किया है। इस विषय में उसने भारत के दिगम्बर जैन तीर्थों पर कई भागों में शास्त्राकार संस्करण भी प्रकाशित किये हैं, जोकि 'भारत के दिगम्बर जैनतीर्थ' शीर्षक से प्रकाशित हैं। इसी के द्वितीय भाग में बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा के तीर्थों का परिचय दिया गया है। जिसके पृष्ठ 15 पर यह उल्लेख है कि “सम्पूर्ण प्राचीन वाङ्मय इस बात में एकमत है कि भगवान् महावीर विदेह में स्थित कुण्डग्राम में उत्पन्न हुए थे। जिस ग्रन्थ में भी भगवान् महावीर के जन्मस्थान का वर्णन आया है, उसमें कुण्डपुर को ही जन्म-स्थान माना है और उस कुण्डपुर की स्थिति स्पष्ट करने के लिए विदेह कुण्डपुर' अथवा 'विदेह जनपद स्थित कुण्डपुर' दिया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में कुण्डपुर या इससे मिलते-जुलते नामवाले नगर एक से अधिक होंगे। अत: भ्रम-निवारण और कुण्डपुर की सही स्थिति बताने के लिए कुण्डपुर के साथ विदेह लगाना पड़ा।" अभी समाज की एक संस्था-विशेष से सम्बद्ध कुछ व्रती एवं ब्रह्मचारीजनों द्वारा इस विषय में आक्षेपात्मक-लेख इस बारे में लिखे जा रहे हैं, जिनमें समाज को निष्क्रिय कहा जा रहा है, तथा भगवान् महावीर की जन्मभूमि विदेह-कुण्डपुर माननेवालों को नरक-निगोद भेजने की तैयारी हो रही है। ऐसे उच्चपदों पर स्थित जनों को ऐसे शब्दों का प्रयोग शोभा नहीं देता। क्या ही अच्छा होता कि यदि सम्पूर्ण आगमग्रन्थों के आलोक में तीर्थक्षेत्र कमेटी एवं प्रमुख समाज के विद्वानों को एकत्र कर इस विषय में निर्णय लिया जाता। आज अधिकांश विद्वान् एवं तीर्थक्षेत्र कमेटी एकमत से स्वीकार कर रहे हैं कि भगवान् महावीर की जन्मभूमि 'विदेह-कुण्डपुर' ही है। यह आलेख इस विषय में कई महत्त्वपूर्ण तथ्यों को निष्पक्षरूप से प्रस्तुत कर समाज को स्पष्ट दिशाबोध देने की | एक नैष्ठिक चेष्टा है। जैन-संस्कृति भारत की ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व की एक प्राचीन एवं सुसमृद्ध संस्कृति रही है। आज भी इसकी एक प्रतिष्ठित-परम्परा चल रही है। भले ही आज की पीढ़ी अपने प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक 007 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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