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में वैशाली को 'भारत का सांस्कृतिक तीर्थ' कहा जा सकता है। __श्री जगदीशचन्द्र माथुर के एक रेडियो-रूपक, वैशाली दिग्दर्शन' में एक पथिक के माध्यम से यह संवाद कहलाया गया है.-"महावीर ने अपने आत्मबल से समस्त भूखण्ड को वैशाली के अधीन कर दिया। ये ही वे महावीर थे, जिनके द्वारा बढ़ाये गये जैनधर्म को आज भी भारतवर्ष में हजारों स्त्री-पुरुष मानते हैं। ये जैनों के चौबीसवें तीर्थंकर माने जाते हैं। इन्होंने श्रीपार्श्वनाथ के मत को अपनाकर उसे परिष्कृत रूप दिया। तुम्हारे इस गाँव से सटा जो वासुकुण्ड गाँव है, वही तब 'कुण्डग्राम' कहलाता था और वहीं उनका जन्म हुआ। तीस वर्षों तक सांसारिक जीवन बिताकर फिर वह श्रमण बनकर निकल पड़े। सारा वज्जी और मगधप्रदेश उनके उपदेशों से अनुप्राणित हो चला, लेकिन वैशाली को वे न भूले और बहुत बार ये वर्षावास करने कुण्डग्राम भी आये।"
'इस वैशाली के आँगन में' शीर्षक कविता में श्री मनोरंजनप्रसाद सिंह की ये पंक्तियाँ द्रष्टव्य है :
सुना, यहीं उत्पन्न हुआ था किसी समय वह राजकुमार। त्याग दिये थे जिसने जग के भोगविलास राज-शृंगार ।। जिसके निर्मल जैनधर्म का देश-देश में हुआ प्रचार। तीर्थंकर जिस महावीर के यश अब भी गाता संसार।। है पवित्रता भरी हुई इस विमल भूमि के कण-कण में।
मत कह क्या क्या हुआ यहाँ इस वैशाली के आँगन में।। वैशाली की पुण्यभूमि में तीर्थंकरों की कई मतियाँ मिलने के अतिरिक्त ऐसे अनगिनत-साक्ष्य हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि वर्द्धमान महावीर की जन्मस्थली वैशाली' ही है। *
ध्यान और दिगम्बर-परम्परा ..... हम स्वयं अनुभव करेंगे कि हमारी श्वेताम्बर-परम्परा की अपेक्षा दिगम्बरपरम्परा में ध्यान की पद्धति सुरक्षित रही है और जितने ग्रंथ दिगम्बर-आचार्यों के हैं, ध्यान के विषय में श्वेताम्बर-आचार्यों के उतने नहीं हैं। उन लोगों में साधना का बहुत अच्छा क्रम चला है। जो परम्परा बाद में रही, उसमें बाह्य-क्रिया ज्यादा आ गई।"
–(चेतना का ऊर्ध्वारोहण, पृष्ठ 62)..
अहिसारूपी अमृत औषधि अहिंसाधर्म को रसायन एवं अमृत का पर्यायवाची माना है— _ 'अमृतत्वहेतुभूतं परममहिंसारसायनं लब्ध्वा ।' - (पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 78) अर्थ :--- अहिंसा अमरता प्रदान करनेवाला परम रसायन है।
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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