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जगदीशचन्द्र जैन (1947), मुनिरत्न प्रभाविजय (1948), कामता प्रसाद जैन (1936), नेमिचन्द्र शास्त्री (1954) तथा प्रो. योगेन्द्र मिश्र (1948) भी वर्द्धमान महावीर का आविर्भाव-स्थल वैशाली ही मानते हैं। - इसप्रकार हम पाते हैं कि संस्कृत-साहित्य वैशाली, कुण्डपुर एवं महावीर से सम्बन्धित कई गूढ-तथ्यों को छिपाये हुये है। आवश्यकता है इस पर विस्तृत-कार्य करने की। पटना विश्वविद्यालय के पाण्डुलिपि-विभाग में संकलित जैन पाण्डुलिपियाँ बड़े महत्त्व की है एवं विवेच्य-बातों को प्रामाणिक ढंग से प्रस्तुत करती हैं। भगवान महावीर के जन्मस्थान के सम्बन्ध में वैशाली-क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य की चर्चा हमें कहीं नहीं मिली। किसी भी संस्कृत-ग्रन्थ में 'लछुआई' या 'नालन्दा-क्षेत्र' को महावीर की जन्मभूमि नहीं बताया गया।
जैनदर्शन नास्तिक नहीं 'इसी प्रसंग में भारतीय दर्शन के विषय में एक परम्परागत मिथ्या-भ्रम का उल्लेख करना भी हमें आवश्यक प्रतीत होता है। कुछ काल से लोग ऐसा समझते हैं कि भारतीय दर्शन की 'आस्तिक' और 'नास्तिक' नाम से दो शाखायें हैं । तथाकथित वैदिक-दर्शनों को 'आस्तिक-दर्शन' और जैन-बौद्ध जैसे दर्शनों को 'नास्तिक-दर्शन' कहा जाता है। वस्तुत: यह वर्गीकरण निराधार ही नहीं, नितान्त मिथ्या भी है। 'आस्तिक' और 'नास्तिक' शब्द 'अस्ति नास्ति दिष्टं मति:' (पाणिनि 4/4/60 अष्टाध्यायीसूत्र) इस पाणिनिसूत्र के अनुसार बने हैं। मौलिक अर्थ उनका यहा था कि परलोक (जिसे हम दूसरे शब्दों में इन्द्रियातीत-तथ्य भी कह सकते हैं) की सत्ता को माननेवाला 'आस्तिक'
और न माननेवाला 'नास्तिक' कहलाता है। स्पष्टत: इस अर्थ में जैन और बौद्ध जैसे दर्शनों को नास्तिक कहा ही नहीं जा सकता। इसके विपरीत हम तो यह समझते हैं कि शब्द-प्रमाण की निरपेक्षता से वस्तु-तत्त्व पर विचार करने के कारण दूसरे दर्शनों की अपेक्षा उनका अपना एक आदरणीय वैशिष्ट्य ही है।'
'इसमें सन्देह नहीं कि न केवल भारतीय दर्शन के विकास का अनुगमन करने के लिए, अपितु भारतीय-संस्कृति के स्वरूप के उत्तरोत्तोर विकास को समझने के लिए भी जैनदर्शन का अत्यन्त महत्त्व है। भारतीय विचारधारा में अहिंसावाद के रूप में अथवा परमत-सहिष्णुता के रूप में अथवा समन्वयात्मक-भावना के रूप में जैनदर्शन
और जैन-विचारधारा की जो देन है, उसे समझे बिना वास्तव में भारतीय संस्कृति के विकास को नहीं समझा जा सकता।'
-(जैनदर्शन' प्राक्कथन, डॉ. मंगलदेव शास्त्री)
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प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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