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________________ (पाँचवीं शती) में स्पष्ट लिखा है कि सिद्धार्थ राजा के पुत्र भारतवासो 'विदेह' के 'कुण्डपुर' में देवी को प्रिय करनेवाले सुन्दर - स्थान को देखकर प्रसन्न हुई । आचार्य जिनसेन के 'हरिवंशपुराण' ( 8वीं शती) में उल्लेख है जम्बूद्वीप में भारतवर्ष और उसमें 'विदेह' स्वर्ग के समान प्रिय है। उस देश में सब तरह से सुशोभित कुण्ड होने के कारण 'कुण्डपुर' नाम पड़ा। गुणभद्र ने उत्तरपुराण ( 9वीं. वि.सं.) में कुण्ड की प्रशंसा की है एवं स्वर्ग से अवतरित होने की बात बताई है। यज्ञ में सात कोटि मणि उपलब्ध होने की बात भी आई है । दामनन्दी ने तो 'पुराणसंग्रह' में विदेह को देवपुरी' की संज्ञा दी है । सकलकीर्ति ने 'वर्द्धमानचरित' ( 15वीं शती) में विदेह को सभी गुणों से युक्त बातया गया है, जहाँ कुण्डपुरी अवस्थित है। असग ने ‘वर्द्धमानचरित' (दसवीं शती) में इस स्थान को धर्मकर्म से परिपूर्ण बताया एवं यहाँ सुरेन्द्र का आविर्भाव होना भी बताया गया है। इस ग्रन्थ के पूरे 18 सर्गों में से केवल अन्तिम दो सर्गों में वर्द्धमान महावीर के जीवनचरित्र का सांगोपांग वर्णन है । इतर सर्गों में उनके पूर्वभवों की कथा विस्तार से वर्णित है। इसमें महावीरस्वामी के चारित्रिक विकास का चित्रण अनेक जन्मों के भीतर से किया गया है । कई ग्रन्थों में तो वैशाली के साथ वैशाली के चेटक राजा एवं सामन्त का भी उल्लेख मिलता है। जैनधर्म के अन्य महाकाव्यों में वरांगचरित, चन्द्रप्रभचरित, वर्द्धमानचरित, पार्श्वनाथचरित, प्रद्युम्नचरित, शान्तिनाथचरित, धर्मशर्माभ्युदय, नेमिनिर्माण-काव्य, जयन्तविजय, पद्मानन्द महाकाव्य, सन्तकुमार महाकाव्य, मल्लिनाथचरित, अभयकुमारचरित, श्रेणिकचरित, मुनिसुव्रत महाकाव्य, विजयप्रशस्ति काव्य, जम्बूस्वामीचरित, जगडूचरित आदि प्रसिद्ध हैं । लघुकाव्यों में धनेश्वर सूरिकृत 'शत्रुञ्जय माहात्म्य' ( 15वीं शती) वादिराज का 'यशोधरचरित' (11वीं शती) जयशेखरसूरि का 'जैन - कुमारसम्भव' चारित्रभूषण का 'महिपालचरित', वादीभसिंह का ‘क्षत्रचूडामणि', धनराज का 'त्रिशतीशृंगर' तथा जैन - सुभाषित-काव्यों में अमितगति का 'सुभाषितरत्नसन्दोह ' एवं सोमप्रभाचार्य की 'सूक्तिमुक्तावली' विशेषरूप से प्रसिद्ध है । अन्य देशी एवं विदेशी विद्वानों ने अपना मन्तव्य दिया है, जिसमें प्रमुख हैं— जर्मन जैकोबी (1884), रुडोल्फ हॉर्नले (1898), वी. ए. स्मिथ (1902), टी. ब्लॉच (1903), स्टेवंशन (1915), काप्रेण्टर (1992), मलालोसकर (1938), इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका (1953), तथा 'इन्साइक्लोपिडिया ऑफ रिलिजन्स एण्ड एथिक्स' भी इसी तर्क पर मुहर लगाते हैं । भारतीय विद्वानों ने एस.एन. दासगुप्त (1909), सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1923), राहुल सांकृत्यायन (1944), नन्दलाल डे (1927), बी. सी. लॉ (1937) आदि प्रसिद्ध हैं । जैन विद्वानों में जुगमन्दरलाल जैन (1940), चिमनलाल जे. साह (1932), कल्याणविजयजी गणी (1941), विजयेन्द्रसूरिजी (1952), सुखलालजी संघवी (1953), हीरालाल जैन (1955), , प्राकृतविद्या + जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only 47 www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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