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8. “ऋषभदेवस्य अष्टाविंशतितमे पुत्रे " —द्र. अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग षष्ठ, पृ. 1194 । 9. द्र. अभिधानराजेन्द्रकोश:, भाग 6, पृष्ठ 37, एवं पृष्ठ 1194 ।
10. शब्दकल्पद्रुम, भाग 4, पृष्ठ 388 ।
11. वही, भाग 3, पृष्ठ 563।
12. आप्टेकृत संस्कृत हिन्दी कोश, पृष्ठ 759।
13. वही, पृष्ठ 935।
14. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 21, पृष्ठ 359-360।
15. वही, खण्ड 16, पृष्ठ 432-4331
16. प्राचीन भारत, पृष्ठ 108 ।
17. वही, पृष्ठ 109।
18. मध्यदेश, प्रकाशक- बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, पृष्ठ 18 ।
19. ऐतिहासिक स्थानावली, पृष्ठ 691-693 ।
20. ऐतिहासिक स्थानावली, पृष्ठ 857-858। 21. आचार्य जिनसेन, हरिवंशपुराण, 2-1 पृ. 12। 22. वही, 2-5 ।
23. आचार्य गुणभद्र, उत्तरपुराण, 75-7-8, पृ. 482
24. जैनधर्म का प्राचीन इतिहास, भाग 1, पृ. 3571
25. शास्त्री नेमिचन्द्र, तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा, भाग 1, पृ. 106 1 26. दीघनिकाय सुत्तपिटक, महापरिनिव्वाणसुत्त, महावग्ग 2, पृ. 327, प्रकाशक- बौद्ध भारती,
वाराणसी 1996।
महावीर की विशेषता
महावीर स्वामी ने तोड़ने का काम नहीं किया, हमेशा जोड़ने का काम किया । उनके साथ बातचीत के लिये कोई उपनिषद् का अभिमानी आता, तो उसके साथ वे उपनिषद् के विषय के आधार पर चर्चा करते थे, गीता का अभिमानी आता, तो के विषय का आधार लेकर चर्चा करते, कोई वेद का अभिमानी आता, तो वेद के विषय का आधार लेकर चर्चा करते, बौद्धों के साथ उनके विषय का आधार लेकर चर्चा करते । उन्होंने अपना विचार किसी पर जरा भी लादा नहीं और सामनेवाले के विचार के अनुसार-सोचकर समाधान देते थे। - संत विनोबा भावे
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जैन और हिन्दू
बिना अच्छा जैनी हुये मैं अच्छा हिन्दू नहीं बन सकता..... जैनधर्म नास्तिक नहीं है । जीव की सत्ता में विश्वास करनेवाला नास्तिक हो ही नहीं सकता ।
— डॉ. परिपूर्णानन्द वर्मा
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प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर-विशेषांक
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