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________________ विराट स्वरूप में श्री महावीर का दर्शन होता है। इसी मार्ग पर चलकर जीव-जगत् अपना कल्याण कर सकता है। 'प्राकृतविद्या' का इसे सही दिशा प्रदान करने का प्रयास सराहनीय -चन्द्रकान्त यादव, चन्दौली (उ०प्र०) ** ● 'प्राकृतविद्या' हमारे हृदय में बसी है। प्राकृतविद्या' में आये हुये हर लेख की मैंने समीक्षा की। लेख, मुद्रण, जानकारी मुझे सराहनीय एवं प्रशंसनीय लगी। आप जो यह धर्म-जागृति का कार्य कर रहे हैं, वह अभिनंदनीय है। ___ --जगदीश चन्द्र कुलकर्णी, दामिनी नगर, सोलापुर (महाराष्ट्र) ** ® 'प्राकृतविद्या', जुलाई-सितम्बर 2001 का अंक मुझे प्राप्त हुआ। हम दोनों आपके और 'प्राकृतविद्या परिवार' के ऋणी हैं। प्राकृतविद्या मुझे समय पर मिलती रहती है। इस अंक में दक्षिण भारत में सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य से भी पूर्व' की बातें एवं 'आत्मजयी महावीर' इसमें मन, वचन, कर्म पर संयम तथा अहिंसा, अद्रोह और मैत्री इसे अच्छे ढंग से जीने की प्रेरणा देता है। साधुओं का निवास और विहार....' में काफी जानकारी प्राप्त हुई। ब्राह्मी लिपि की सतह तक ले जाने का धन्यवाद । हमारे म्यूजियम में सिक्कों का Documentation करते हैं, तथा कॉलेज में History पड़ने वाले विद्यार्थियों को Coins के बरे में Lecture भी देते हैं। इस संदर्भ में जो 'बैंकिग प्रणाली' की जानकारी प्राप्त हुई, जैसे धन का दाम, ब्याज की प्रतिशतता, जमा-राशि पर ब्याज, जो आज हमारे जीवन में कितनी सरलता से विश्व में कार्य करते हैं। आत्मा और कर्म, आत्मा संयम और आचार मूलकधर्म तथा नाव और मल्लाह का किस्सा तथा कलियुग का किस्सा जो सब चल रहा है। जानवर (जीवदया) पर बनाया कानून दिल को छू लेनी वाली बात है। इस कलयुग में बेजुबान जानवरों के लिये कानून बनाया। आत्मा और कर्म, आत्म संयम और आचारमूलक धर्म तथा और कुछ बातें हम प्रदर्शन के वक्त उसकी Xerox निकलवाकर प्रदर्शन में Display करते हैं, ताकि आनेवाली पीढ़ी पढ़कर कम से कम थोड़ा-सा अपने दिमाग में ग्रहण करे या थोड़ा-सा बदलाव लाये। डॉ० रमेशचन्द्र जी के खण्डहरों का वैभव में जो नेमिनाथ जी, शान्ति जी, कुन्थ और अरनाथ जी की मूर्ति के बारे में दिया है, जो हमारे Museum में जैन-मूर्तियों के वर्णन करने में काफी सहायक हुआ है। हम प्राकृतविद्या-परिवार के ऋणी हैं। -अफरोज सुलताना एवं शफका सुलताना, अहमदाबाद (गुजरात) ** ● 'प्राकृतविद्या', का वर्ष 13 का अंक प्राप्त हुआ। आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज का संयम-विषयक विश्लेषण प्रत्येक मानव-हृदय को स्पर्श करनेवाला है। 'पिच्छी-कमण्डलु' भी मुनिधर्म की महत्ता के लिए मननीय है। पूज्यश्री का अध्ययन और जीवन ऐसा है कि वे जो बोलते हैं, वह उनका पचाया हुआ होता है। ___पंडितप्रवर टोडरमल जी की आगम तथा साहित्य-सेवा साहित्य के इतिहास में अमर-अविस्मरणीय है और रहेगी, पर मैंने यह भी देखा कि हमारे कतिपय स्वनामधन्य प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक 0 179 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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