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________________ मराठी-भाषा में कथा-लेखन और प्राचीन कथाओं का आधुनिक रीति से सम्पादन होना इस भाषा के साहित्य की समृद्धि को तो बताता ही है, साथ ही सम्पूर्ण भारतीय कथा - साहित्य में मराठी - साहित्य के योगदान को भी रेखांकित करता है । इस महत्त्वपूर्ण प्रकाशन के लिये यशस्वी सम्पादक श्रीमान् श्रेणिक अन्नदाते जी भूरिशः बधाई के पात्र हैं । उन्होंने सुमेरु प्रकाशन के द्वारा मराठी - साहित्य के प्रकाशन की एक यशस्विनी-परम्परा प्रवर्तित की है, तथा वे मराठी के इतिहासकारों को भी एक मंच पर लाने का नैष्ठिक प्रयत्न कर रहे हैं । मराठी - साहित्य - जगत् में अन्नदाते जी का यह सारस्वतअवदान चिरस्मरणीय रहेगा । -सम्पादक ** (3) पुस्तक का नाम: माझं सासर..... माझं माहेर शब्दांकन 1: श्रेणिक अन्नदाते प्रकाशक संस्करण मूल्य 4. श्रीमती शरयू दफ्तरी, 5-ए, वुडलैंड, डॉ. जी. देशमुख मार्ग, मुम्बई - 400026 : प्रथम, 2001 ई० : 60/- (डिमाई साईज़, पेपरबैक, लगभग 110 पृष्ठ) प्रायः व्यक्तियों का जीवन परिचय पर साहित्य आत्मश्लाघा या कुलपरम्परा के यशोगीतियों की दृष्टि से लिखा जाता है । और इसीकारण से लोकजीवन में उसकी प्रतिष्ठा साहित्य-गरिमा के अनुरूप नहीं हो पाती है । किन्तु प्रस्तुत पुस्तक इस दिशा में एक अपवाद कही जायेगी, क्योंकि इसके केन्द्रीय - व्यक्तित्व न केवल परिवार एवं समाज के लिये अतिविशिष्ट थे; अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास में उनका योगदान अतुलनीय था । ऐसे महान् व्यक्तित्वों का जीवन, उनकी प्रमुख घटनायें, उनके आदर्श और सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास में उनके योगदान का पुस्तकाकार रूप में संकलन और रूपांकन अपने आप में एक प्रेरक-साहित्य के रूप में जाना जायेगा । श्रेष्ठिवर्य्य लालचंद जी हीराचंद जी दोशी के परिवार ने इस देश में उद्योग - जगत् की आधारशिला रखी। पहला वायुयान, पहला जलयान एवं मोटरगाड़ी इस देश में इसी परिवार के औद्योगिक प्रतिष्ठानों में बनी। इसके साथ ही राष्ट्रीय विकास के लिये अपने उद्योग-धन्धों के द्वारा इस परिवार ने जो योगदान दिया, वह इस देश के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा । स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिये भी इस परिवार के योगदानों का उल्लेख स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया है। तथा जैनसमाज के अधिकांश विकासोन्मुखी - कार्य इसी परिवार के सदस्यों के योगदान से संभव हुये हैं । इन सबका मराठी भाषा में लेखा-जोखा प्रस्तुत करनेवाली यह कृति एक सद्गृहिणी के द्वारा सीधे-सादे शब्दों में, किन्तु प्रभावी शैली में निर्मित होने के कारण साहित्यकारों, समाजसेवियों एवं राष्ट्रप्रेमियों - सभी के लिये उपयोगी सिद्ध होगी। -सम्पादक ** - प्राकृतविद्या + जनवरी - जून 2002 वैशालिक - महावीर-विशेषांक For Private & Personal Use Only Jain Education International 00173 www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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