________________
महावीर-वाणी
रचियता—पं० जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' अखिल-जग-तारन को जलयान । प्रकटी, वीर ! तुम्हारी वाणी, जग में सुधा-समान ।। अखिल० ।।
अनेकान्तमय, स्यात्पद-लांछित, नीति-न्याय की खान । सब कुवाद का मूल नाशकर, फैलाती सत्-ज्ञान ।।
नित्य-अनित्य अनेक-एक इत्यादि कुवादि महान। नतमस्तक हो जाते संमुख, छोड़ सकल अभिमान।।
जीव-अजीव-तत्त्व निर्णय कर, करती संशय-हान । साम्यभाव-रस चखते हैं , जो करते इसका पान ।।
ऊँच-नीच औ' लघु-सुदीर्घ का, भेद न कर भगवान् । सबके हित की चिन्ता करती, सब पर दृष्टि समान ।।
अन्धी श्रद्धा का विरोध कर, हरती सब अज्ञान। भुक्ति-वाद का विरोध कर, हरती सब अज्ञान ।।
ईश न जग-कर्ता, फल-दाता, स्वयं सृष्टि-निर्माण। निज-उत्थान-पतन निज-कर में, करती यों सुविधान ।।
हृदय बनाती उच्च, सिखाकर धर्म सुदया-प्रधान। जो नित समझ आदरें इसको, वे 'युग-वीर' महान् ।। अखिल-जग-तारन को जलयान ।
00 128
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org