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________________ प्रतिष्ठित करायीं थीं। अपने इन्हीं उदार एवं प्रेरक-सत्कार्यों के कारण वह सर्वत्र 'दानचिन्तामणि' के नाम से प्रसिद्ध थी । महान् कवियित्री कन्ती देवी ( 12वीं सदी) उन विदुषी - लेखिकाओं में से थी, जिसने साहित्य एवं समाज के क्षेत्र में बहुआयामी - कार्य किये थे । वह दोरसमुद्र के राजा बल्लाल (द्वितीय) की विद्वत्सभा की सम्मानित विदुषी कवियित्री थी । कन्नड़ महाकवि बाहुबलि ने मंगल- लक्ष्मी, शुभगुणचरिता, अभिनव - वाग्देवी आदि अनेक विरुद - प्रशस्तियों द्वारा उसे सम्मानित किया है । वीरांगना सावियव्वे श्रावक - शिरोमणि वीरमार्तण्ड महासेनापति चामुण्डराय (सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य के शिष्य) की समकालीन थी । उसके पति का नाम लोक-विद्याधर था। एक ओर तो वह अपने पति के साथ युद्ध - क्षेत्र में जाकर वीरतापूर्वक रण- जौहर दिखलाती थी और दूसरी ओर अतिरिक्त समयों में वह नैष्ठिक श्राविका - व्रताचार का पालन करती थी । श्रवणबेलगोल की बाहुबलि - वसति में पूर्व दिशा की ओर एक पाषाण में अं एक दृश्य में उसी सावियव्वे को हाथी पर सवार एक योद्धा पर असि - प्रहार करते हुए चित्रित किया गया है । उसी पाषाण में टंकित लेख में इस वीरांगना को रेवती रानी जैसी पक्की श्राविका, सीता जैसी पतिव्रता, देवकी जैसी रूपवती, अरुन्धती जैसी धर्मप्रिया और जिनेन्द्र-भक्त बतलाया गया है । पम्पादेवी (12वीं सदी) विक्रमादित्य - सान्तर की बड़ी बहिन थी । उसके द्वारा निर्मापित एवं चित्रित अनेक चैत्यालयों के कारण उसकी यशोगाथा का सर्वत्र गान होता था । कन्नड़ के महाकवियों ने उसके चरित्र-चित्रण के प्रसंग में प्रमुदित होकर कहा है कि 'आदिनाथचरित' का श्रवण की पम्पादेवी के कर्णफूल, चतुर्विधदान ही उसके हस्तकंकण तथा जिनस्तवन ही उसका कण्ठहार था। इस पुण्यचरित्रा पम्पा ने उर्वितिलक - जिनालय का निर्माण छने हुए प्रासुक-जल से केवल एक मास के भीतर ही कराकर उसे बड़ी ही धूमधाम के साथ प्रतिष्ठित कराया था। पम्पादेवी स्वयं पण्डिता भी थी । उसने कन्नड़ भाषा में 'अष्टविधार्चन - महाभिषेक' एवं 'चतुर्भक्ति' नामक ग्रन्थों की रचना की थी। बीसवीं सदी के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी जैन नारियों ने बढ़-चढ़कर अपनी सहभागिता दर्ज की थी। उन्होंने गोली की बौछारें भी सहीं और जेल की सलाखों के पीछे बन्द भी रहीं । भगवान् महावीर ने नारी - विकास को जिसप्रकार प्रतिष्ठित किया था, सदियों से उसीप्रकार उसने विपरीत परिस्थितियों के बीच भी अपनी साधना, लगन, निष्ठा और धार्मिक आचरण से उसे उत्तरोत्तर वृद्धिंगत किया है । यद्यपि भगवान् महावीर कोई राजनयिक - पुरुष नहीं थे, उनके हाथ में ऐसा शासन-तन्त्र भी नहीं था कि जिसके आधार पर कोई ओर्डिनेन्स ( ordinance) जारी करके महिलाओं ☐☐ 118 Jain Education International प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर - विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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