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21. नमिनाथ
20000 45000 22. नेमिनाथ
18000
40000 23. पार्श्वनाथ
16000
38000 24. महावीर
14000 36000 वैशाली की महावीरकालीन राजकुमारी चन्दनबाला, जो बेड़ी में जकड़ी हुई एक क्रीतदासी का जीवन व्यतीत कर रही थी, उसे भगवान् महावीर ने दासता से ही मुक्त नहीं किया; अपितु उसे अपने चतुर्विध-संघ में दीक्षित कर साध्वियों की प्रधान भी बनाया। यह भगवान् महावीर की नारी के प्रति उच्च-सम्मान की भावना का ही प्रतिफल था कि उनके संघ में जहाँ साधुगण 14000 थे, वहीं साध्वियों की संख्या 36000 थी और श्रावकों की संख्या जहाँ 1 लाख थी, वहीं श्राविकाओं की संख्या 3 लाख थी।
भगवान् महावीर ने नारियों के जीवन में जागरण की ऐसी क्रान्ति उत्पन्न की, जिसने तुच्छ, हीन एवं अबोध समझी जानेवाली अबलाओं में भी उच्च-भावनाओं को उबुद्ध कर दिया। कोशा, सुलसा, जयन्ती, शीलवती, अनन्तमती, रोहिणी और रेवती आदि ऐसी ही प्रबुद्ध महिलायें थीं, जो किसी भी महारथी विद्वान् से बिना किसी झिझक के शास्त्रार्थ कर सकती थीं और अपनी प्रतिभा-चातुर्य से वे उन्हें निरुत्तर कर सकती थीं। ___भगवान् महावीर के नारी-जागरण की यह परम्परा उनके बाद लगभग 1500 वर्षों तक अबाधगति से चलती रही। भारत में अनेक जैन महिलायें ऐसी भी हईं, जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक उन्नति के साथ सामाजिक, धार्मिक एवं अपने देश की सुरक्षा एवं राजनैतिक उत्थान में पुरुषों के साथ सहभागिता का अनुपम परिचय दिया, जिसकी विस्तारपूर्वक चर्चा 9वींसदी से लेकर 16वीं सदी के शिलालेखों एंव ग्रन्थ-प्रशस्तियों में उपलब्ध है। अंग-चम्पा की महारानी पद्मावती, मयणसुंदरी, रयणमंजूषा, कमलश्री, सुभद्रा तथा दक्षिण भारत की महासती अत्तिभव्वे, सावियव्वे, जक्कियव्वे, कवि कन्ती आदि प्रमुख हैं। श्राविका अत्तिभव्वे (10वीं सदी) न केवल कर्नाटक की अपितु, समस्त महिला-जगत् के गौरव की प्रतीक हैं। यह वीरांगना महासेनापति मल्लप की पुत्री और महादण्डनायक वीर नागदेव की पत्नी थी। उसने अपने शील-सदाचार, अखण्ड-पातिव्रत्य धर्म और जिनेन्द्र-भक्ति में अडिग-आस्था के फलस्वरूप गोदावरी नदी में आई हुई प्रलयंकारी-बाढ़ के प्रकोप को भी शान्त कर दिया था और उसमें फंसे हुए अपने पति के साथ-साथ सैकड़ों वीर सैनिकों को वह सुरक्षित वापिस ले आई थी।
उक्त अत्तिभव्वे स्वयं तो विदुषी थी ही, उसने आग्रहपूर्वक सुप्रसिद्ध महाकवि रन्न (रत्नाकर) से 'अजितनाथ पुराण' की रचना अपने ही आश्रय में रखकर करवाई थी। उसने उभयभाषाचक्रवर्ती' पोन्न-कृत शान्तिनाथ पुराण' की 1000 प्रतिलिपियाँ कराकर विभिन्न-शास्त्रभण्डारों में वितरित कर सुरक्षित कराई थीं। यही नहीं, उसने स्वर्ण, मणि-मणिक्य, हीरा आदि की 1500 भव्य मूर्तियाँ बनवाकर भी विभिन्न जिनालयों में
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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