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________________ लोग यहाँ आते हैं। विप्पक्षा गुफा :- जब आप इस गुफा के द्वार पर खड़े होंगे, तो बड़ा ही आनंद आयेगा। यह पत्थरों की बनी हुई है। इसे 'राजा जरासंध की बैठक' भी कहा जाता है। कहते हैं कि यहाँ राजा जरासंध अपने दरबारियों के साथ बैठकर अपने राजकाल के बारे में सलाह किया करता था। सप्तपणी गुफा :- यह वही गुफा है जहाँ महात्मा बुद्ध के देहान्त के बाद बौद्ध भिक्षुओं की पहली सभा हुई थी, जिसमें विचार किया गया कि आगे बौद्ध-धर्म का प्रचार कैसे किया जाये, कौन-कौन से नियम बनाये जायें, ताकि इस धर्म को कोई हानि न पहुँचे। मनियार मठ :- यह मठ ईटों और लोहे ही चादरों से बना हुआ है। यहाँ से जो विशाल मार्ग प्रारंभ होता है, वह राजगृह और बोधगया को आपस में मिलाता है। स्वर्ण-भंडार गुफा :- यह भी हजारों साल पुरानी गुफा है। यह 'मनियार मठ' से उत्तर-पश्चिम की ओर है। इस स्थान को ज्यादातर लोग 'सोना-भंडार' कहा करते हैं। इसका निर्माण-काल 1700-1800 वर्ष पूर्व का है। इसमें जैन साधु रहा करते थे। राणा भूमि :- यह स्थान स्वर्ण--भंडार गुफा से पश्चिम की ओर एक मील पर है। यहाँ लोग प्राय: पैदल ही बड़े मजे से पहुँच जाते हैं। लोगों का कहना है कि यह प्राचीनकाल में जरासंध का अखाड़ा था और यह भी कहा जाता है कि इसी स्थान पर जरासंध और बलशाली भीम का प्रसिद्ध मल्लयुद्ध हुआ था, जो 28 दिनों तक चलता रहा; जिसमें जरासंध बुरी तरह हार गया और भीम के बलिष्ठ घूसों की मार बर्दाश्त न कर सकने के कारण वह असहाय हो गया। बिंबिसार का कारागार :- राजा बिंबिसार यद्यपि आस्था की दृष्टि से एक जैनधर्मानुयायी सम्राट् था, साथ ही वह एक दृढ़चरित्र प्रशासक भी था। अपराधियों को वह तुरन्त दंड देता। उसके समय के कारागार के अवशेष आज भी विद्यमान हैं। ___ गृध्रकूट :-- यहाँ महात्मा बुद्ध ने बहुत दिनों तक वास किया था और शांति, अहिंसा तथा प्रेम का उपदेश देकर लोगों को अपना शिष्य बनाया। इस शिष्यों में बहत से लोग बौद्ध सिद्ध और सन्यासी बने और बौद्धधर्म के प्रचार के लिये देश-विदेश की यात्रायें की। जीवकवन-आम्रवन :- राजा बिंबिसार के समय में राजगृह में 'जीवक' नाम का एक प्रसिद्ध वैद्य था। बताया जाता है कि वह गहरे से गहरे घाव को मात्र चूर्ण खिलाकर ठीक कर देता था। जीवन से निराश रोगियों को वह पाँच दिन की औषधि खिलाकर एकदम स्वस्थ कर देता था। राजा बिंबिसार ने उसे अपना राजवैद्य इसीलिये बनाया था, जीवक इतना प्रसिद्ध वैद्य था कि राजस्थान तक के राजा-महाराजा उसे अपनी चिकित्सा प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) +महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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