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________________ महासती चन्दना -श्रीमती नीतू जैन “निर्वर्ण्य तूर्णमागत्य प्रणिपत्य जिनेश्वरम् । चन्दना राजकन्यानां षष्ठादीक्षामुपेयुषी।।" __ -(आचार्य दामनन्दि, पुराणसारसंग्रह 2/5/25, पृ० 202) अर्थ :- चेटक राजा की छठवीं पुत्री राजकन्या चन्दना ने भगवान् महावीर को प्रणाम कर तथा शीघ्र ही संसार से विरक्त होकर दीक्षा ले ली और वह श्रमणा बन गई। घर-घर में चन्दना की कथा, अन्यथा सब व्यथा ही व्यथा । चन्दना की करो वन्दना, छूटेंगे भव-बन्धना।। आज से लगभग 2600 वर्ष पुरानी बात है। उस समय वैशाली के गणप्रमुख राजा चेटक थे। उनकी पट्टरानी का नाम श्रीमती सुभद्रा था। राजा चेटक और महारानी सुभद्रा दोनों ही अत्यन्त गुणवान थे। वे प्रशंसनीय राजभक्त होने के साथ ही उत्तम जिनेन्द्र-भक्त भी थे। एक बार की बात है कि उनकी सबसे छोटी पुत्री चन्दनबाला —जिसे प्यार से चन्दना भी कहते थे – अपनी सखियों के साथ राजोद्यान में विहार करने गई। वह अत्यन्त रूपवती थी। उसी समय एक विद्याधर अपने विमान में बैठकर उद्यान के ऊपर से गुजर रहा था। वह चन्दना के अनिन्द्य सौन्दर्य पर मोहित हो गया और उसने अत्यन्त कामविहल होकर उसका अपहरण कर लिया। वह उसे लेकर वहाँ से भाग निकला। असहाय चन्दना ने कामी विद्याधर के चंगुल में फँसकर करुण-क्रन्दन तो बहुत किया, पर वह अपने शीलधर्म पर भी अत्यन्त दृढ़ थी। बस, अब क्या था? विद्याधर का थोथा पौरुष तुरन्त हवा में उड़ गया और वह कामातुर से चिन्तातुर बन गया। उसने चन्दना को वहीं भयानक वन में उतार दिया और स्वयं अपने प्राण बचाकर वहाँ से भाग गया। महासती चन्दना उस भयानक वन में भी धैर्यपूर्वक पंचपरमेष्ठी का स्मरण करती हुई अपने अशुभ कर्मों को काट रही थी। किन्तु उसी समय वहाँ कहीं से एक भील आ निकला। उसने इस अकेली सुन्दरी को देखकर सोचा- “यदि इसे मैं अपने सरदार को 40 60 प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) +महावीर-चन्दना-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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