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________________ वैशालिक महावीर -श्रीमती रंजना जैन जैन परम्परा और महावीर :- भारतभूमि पर जैन - संस्कृति एक अतिप्राचीन संस्कृति रही है। इसका प्रभाव वैदिक साहित्य एवं संस्कृति पर भी पड़ा है। वर्तमान युग में इसके प्रवर्तक प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ - ऋषभदेव थे, जिनके ज्येष्ठपुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' जाना जाता है। इनकी परम्परा में बाद में तेईस (23) तीर्थंकर और हुये हैं, जिनमें अंतिम - चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर थे । इस बात का समर्थन करते हुये महर्षि व्यास द्वारा रचित 'वैदिक पद्मपुराण' में लिखा है— “अस्मिन्वै भारते वर्षे जन्म वै श्रावके कुले, तपसा युक्तमात्मानं केशोत्पाटनपूर्वकम् । तीर्थंकराश्चतुर्विंशत्तया तैस्तु पुरस्कृतम्, छायाकृतं फणीन्द्रेण ध्यानमात्र-प्रदेशिकम् ।। -(5/14/389-390) इसमें कहा गया है कि इस भारतवर्ष में चौबीस तीर्थंकर श्रावक (क्षत्रिय) कुल में उत्पन्न हुये, जिन्होंने केशलुंचनपूर्वक अपने आपको तपस्या में समर्पित किया । उनके द्वारा यह निर्ग्रन्थ जैन - परम्परा चली है । वेदों, पुराणों तथा 'महाभारत', 'श्रीमद्भागवत्' आदि ग्रन्थों में अनेकत्र इन चौबीस तीर्थंकरों के नाम भी उल्लिखित मिले हैं, तथा वहाँ इनकी जीवनचर्या का यशोगान भी अनेक स्थानों पर किया गया है । बौद्धदर्शन के प्रसिद्ध आचार्य धर्मकीर्ति भी लिखते हैं" ऋषभो वर्धमानश्च तावादौ यस्य स ऋषभवर्धमानादि: दिगम्बराणां शास्ता सर्वज्ञ आप्तश्चेति ।” -- (न्यायबिन्दु, 3 / 131, पृष्ठ 126 ) अर्थ प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव एवं अंतिम तीर्थंकर वर्धमान- पर्यंत चौबीस हुए, जो कि स्वयं नग्न दिगम्बर सर्वज्ञ आप्तपुरुष थे । तीर्थंकर यह जैन-संस्कृति एवं परम्परा इतिहास के पृष्ठों से कहीं अतिप्राचीन है । विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक 'सिन्धु घाटी की सभ्यता' में प्राप्त पुरावशेषों के विस्तृत अध्ययन के उपरान्त अनेकों विद्वानों ने यह सत्यापित किया है कि यह सभ्यता जैन तीर्थंकरों के उपासकों की थी। इसमें प्राप्त सीलों पर जो 'कायोत्सर्ग 'मुद्रा' में ध्यानस्थ मूर्तियाँ मिलीं हैं, वे इस तथ्य की पुष्टि करती हैं। इसके अनुसार ईसापूर्व 2500 54 प्राकृतविद्या + जनवरी - जून 2001 (संयुक्तांक) महावीर चन्दना - विशेषांक For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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