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आर्या चन्दनाष्टक
–विद्यावारिधि डॉ० महेन्द्र सागर प्रचंडिया
कुल कुलीन में जन्म ले, धरे धरणि पर पाँव । हर्षित सारे हो उठे, बाखर-बाखर गाँव ।।
दास-प्रथा के ब्याज से, पाया कारावास । रही जूझती चन्दना, रखकर शुभ विश्वास ।।
करे चन्दना पाठ नित, भक्ति-भाव नवकार । अडिग रही माँ चन्दना, जगे शील-संस्कार ।।
चन्दन-सा चारित्र ले, सुरभित किया समाज। मातु चन्दना बन गई, पूजनीय सरताज ।।
नवधा भक्ती-भाव से, माँ ने दिया अहार । पड़ग गए प्रभु वीर जी, करने को उद्धार ।।
दास-प्रथा को भंग कर, किया नारि-सम्मान । वीर-प्रभू का हो उठा, अग-जग में जयगान ।।
भोग-भाव से विरत हो, पूजे चरण-पखार। वंदनीय हर हाल में, नारी का संसार ।।
उत्तम परिणति आर्या, है नारी का रूप । मातु-वंदना से जगे, निज में आत्म-स्वरूप ।।
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 53
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