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________________ चेटक की पत्री. रानी त्रिशला की छोटी बहिन चन्दना कौशाम्बी के एक तलघर में बैठी अपने दुर्भाग्य पर आंसू बहा रही थी, बेड़ियों में पांव कसे हुए थे। चन्दना का सौन्दर्य ही उसका शत्रु बन गया था। वह सोच रही थी 'नारी कितनी विवश है, उसका रूप स्वयं उसकी बेड़ी है।' विद्याधर द्वारा अपहरण, कौशाम्बी की मण्डी में उसकी सार्वजनिक नीलामी, सेठ कृषभानु द्वारा उसकी खरीददारी, सेठानी का द्वेष, तलघर में जंजीरों को जकड़कर डाल देना, मात्र उबले उड़दों पर गुजर उसे रह-रह कर चुनौती देने लगे और एक दिव्य तेज उसे प्रबोधित करने लगा। उसे विश्वास हो गया कि यह मेरी नियति नहीं है, उसका जीवन प्रकाशित होगा और सदा-सदा के लिये इस नारी जन्म की कर्म वर्ण को भस्मसात् कर देगी। कृषभान का तलधर उसके अन्तस्तल को स्पर्श कर गया। उसके मन में सम्यक्त्व स्पन्दित हो उठा। उसे आत्मशमन का बोध हुआ, रत्नत्रय का उपहार मिला। वह उबले हुए कौंदों का आहार दे रही थी और सम्यक्ज्ञान का आहार पा रही थी। दृश्य इतना दिव्य था कि मध्याह्न का सूर्य भी उस तलघर में अनाहूत उतर आया था और चन्दना को दीप्त कर रहा था। इस पल नारीत्व और चन्दना का सतीत्व अमर हो गया था। नारी के कीर्ति-ग्रन्थ में एक उज्ज्वल पृष्ठ और बढ़ गया। सारा विष एक साथ पान करके लौकिक पगडंडी को छोड़कर आत्मकल्याण के राजमार्ग पर भगवान महावीर के पीछे-पीछे चल देने वाली चौबीसवें तीर्थंकर, त्रिकालज्ञ, सर्व सक्षम की मौसी ने भी कर्मों के भोग तो भोगे ही; परन्तु अपने चरित्र में कठोर तपश्चरण की तूलिका से विभिन्न छटाओं को भरकर कलात्मक कृति बना दिया। जिसका रसास्वादन आज भी नारी यदि करे; तो विषयाभिभूत भौतिकता की प्रतिस्पर्धा में दौड़ते समस्त जगत् को स्वकेन्द्रित कर सकती है। चन्दना का चरित्र अनुभूतियों का दर्पण है, जो आदर्श के साथ-साथ प्रेरणा भी देता है-- अबला नारी को सबलता प्रदान करने में पूर्णत: सक्षम चन्दना का चरित्र युगादर्श है। दृढ़ चारित्रिक बल एवं साहस का सार्थक परिचय देने वाली चन्दना ने सचमुच युग ही बदल डाला था। चन्दना ने अब त्राण पा लिया था, जैसे जीवन का कोई निष्णात शिल्पी अमरत्व की पूज्य प्रतिमा को उत्कीर्ण करने लगा हो। व्यर्थता घिस-घिस कर गिर रही थी और सार्थकता आकार ले रही थी, कर्मबन्ध टूट रहे थे। ज्ञान की ज्योति प्रखर थी। ज्ञानरूपी सूर्य अपनी अरुण लालिमा सहित पृथ्वी से उग रहा था। भाषातीत चन्दना की उस दिव्यता ने नारीत्व को धन्य कर दिया, इससे सुन्दर श्रृंगार आज तक किसी नारी का नहीं हुआ – सब नम्रीभूत थे। चन्दना लीन थी अलौकिक शोध में और सेठानी-सहित सब प्रायश्चित के टप-टप बहते अश्रु से उसके चरण पखाल रहे थे; उसकी कठोर तपश्चर्या से नारी पर्याय तिरोहित हो रही थी। मुक्ति के पदचाप कदम बढ़ा रहे थे। आत्मा की अनन्त तेजस्विता ने झांकना प्रारम्भ कर दिया था। 00 44 प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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