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________________ और पूज्य आचार्यश्री की पावन-प्रेरणा के सम्बन्ध का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया। ये पुरस्कार थ्रीमती सोनिया गाँधी जी के करकमलों से समर्पित किये गये। इन पुरस्कारों में एक-एक लाख रुपयों की राशि. प्रशस्तिपत्र, सरस्वती प्रतिमा आदि समर्पित किये गये हैं। इसी कार्यक्रम में शोध के क्षेत्र में विश्वकीर्तिमान बनाने वाले डॉ० त्रिलोकचन्द्र जी कोठारी एवं स्वास्थ्य सेवाओं में विश्रुत नाम डॉ० शांतिकुमार सोगानी को उनकी उत्कृष्ट सामाजिक सेवाओं के लिये उत्कृष्ट समाजसेवी' पुरस्कार भी दिये गये। श्रीमती सोनिया गाँधी जी ने डॉ० कोठारी की शोधकृति 'भगवान् महावीर की परम्परा और समसामयिक सन्दर्भ का भी लोकार्पण किया। समारोह में धन्यवाद ज्ञापन श्री सी०पी० कोठारी ने किया। समारोह का सफल संयोजन और संचालन डॉ० सुदीप जैन ने किया। कार्यक्रम के आयोजन एवं व्यवस्था में श्री सुभाष चोपड़ा जी, श्रीमती सरोज खापर्डे जी, श्री चक्रेश जैन (बिजलीवाले), श्री सतीश जैन (SCJ), श्री सुरेश जैन (EIC), श्री महेन्द्र कुमार जी जैन (पूर्व निगम-पार्षद), श्री सुरेन्द्र कुमार जी जैन जौहरी, श्री एम०के० जैन. श्री रूपेश जैन, श्री राकेश जैन (जनकपुरी), श्री सतीश जैन (आकाशवाणी), डॉ० वीरसागर जैन, श्री अनिल जैन (ओम मैटल), श्री पारसदास जैन श्री प्रभात जैन तथा विभिन्न क्षेत्रों के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उल्लेखनीय योगदान दिया। –सम्पादक ** धृतपंचमी-समारोह का आयोजन परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में कुन्दकुन्द भारती प्रांगण में 27 मई 2001. रविवार को श्रुतपंचमी-पर्व के सुअवसर पर एक गरिमापूर्ण समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में ध्वजारोहण की मांगलिक विधि के उपरान्त जिनमन्दिर जी में श्रुतपूजन का कार्यक्रम धर्मानुरागी श्री राकेश जैन 'गौतम मोटर्स' एवं उनके परिजनों के नेतृत्व में स्थानीय जैनसमाज के द्वारा सम्पन्न हुआ। श्रुतपूजन के बाद कुन्दकुन्द भारती के नन्दनकानन जैसे सुरम्य एवं आह्लादकारी परिसर में एक सभा आयोजित हुई. इस सभा के प्रारंभ में धर्मानुरागिणी श्रीमती उषा जैन एवं श्रीमती शालिनी जैन की मंगल-गीतियाँ प्रस्तुत हुई। ___इस सभा में अपना मंगल-आशीर्वाद प्रदान करते हुये परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने श्रुत के प्रवर्तन की परम्परा पर गरिमापूर्ण वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि “वीतराग परमात्मा के द्वारा उपदिष्ट तत्त्वज्ञान का संरक्षण आचार्य गुणधर, आचार्य धरसेन, आचार्य पुष्पदन्त-भूतबलि एवं आचार्य कुन्दकुन्द जैसे महान् समर्थ आचार्यों ने अत्यंत श्रम और समर्पणपूर्वक किया है। यह उनका ही अपार वात्सल्य है कि मूल जिनवाणी आज भी हमें सुरक्षित मिलती है, इस परम्परा को हमें अत्यंत निष्ठा और समर्पण की भावना से न केवल सुरक्षित करना है; अपितु इसका विश्वभर में आधुनिक विज्ञान की तकनीकियों प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 133 Jain Education International For Prate & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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