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(2) पुस्तक का नाम : धवलगान सम्पादक : डॉ० सुभाषचंद्र अक्कोळे प्रकाशक :: अनेकांत शोधपीठ, बाहुबली, जिला-कोल्हापुर (महा०) संस्करण : प्रथम, 2001 ई० मूल्य :: 100/- (डिमाई साईज़, पेपर बैक, लगभग 160 पृष्ठ)
मराठी भाषा में अन्य भारतीय भाषाओं की भाँति विपुल परिमाण में धार्मिक प्रकीर्णक साहित्य का निर्माण हुआ, जो कि प्राय: धर्मानुरागियों के स्वरों में ही जीवित रहकर गतिशील बना रहा। किंतु कालक्रम से इसमें बहुत सारी प्रकीर्णक रचनायें लुप्त होती गईं। अत: यह आजके युग के संसाधनों के अनुरूप अत्यंत आवश्यक था कि ऐसे साहित्य को सम्पादित एवं प्रकाशित कर इसका संरक्षण किया जाये। इस विधि से न केवल यह साहित्य संरक्षित होगा, अपितु इसे पुर्नजीवन भी मिलेगा।
यह हर्ष का विषय है कि महाराष्ट्र के कई विद्वान् अत्यंत श्रमपूर्वक मराठी-साहित्य के संरक्षण, सम्पादन, निर्माण एवं प्रकाशन में समर्पितभाव से संलग्न हैं। इसी क्रम में एक विशिष्ट नाम है डॉ० सुभाषचंद्र अक्कोळे का, जिन्होंने अपने सुदीर्घ वैदुष्यपूर्ण जीवन में अनेकों यशस्वी पत्रिकाओं का निमित्त सम्पादन किया तथा अनेकों कृतियों का निर्माण भी किया। विशेष बात यह है कि उनके द्वारा हुआ प्रत्येक साहित्यिक कार्य प्रामाणिकता की दृष्टि से आदरणीय होता है।
प्रस्तुत कृति में भी उन्होंने महाराष्ट्री अपभ्रंश एवं प्राचीन मराठी के गद्य-पद्य रूप प्रकीर्णक छोटी-छोटी रचनाओं को सुसम्पादित करके संग्रहीत किया है। तथा इनके संदर्भ स्तरों की प्रामाणिक सूची दी है। मूल शब्द प्राचीन ग्रंथों के होने के कारण उनके अर्थबोध में कठिनाई न हो, इसके लिये एक संक्षिप्त शब्दकोश भी इसके साथ दिया है। इसप्रकार यह कृति अपना विशिष्ट महत्त्व रखती है। आशा है जिज्ञासू विद्वानों एवं समाज के सभी वर्गों में यह व्यापक उपयोगी सिद्ध होगी।
सम्पादक **
पुस्तक का नाम : रत्नाकर मूल-लेखक : प्रो० जी० ब्रह्मप्या एवं एम०वी० श्रीनिवास हिन्दी-अनुवाद
: डॉ० एन०एस० दक्षिणामूर्ति प्रकाशक : एस०डी०जे०एम०आई० मैनेजिंग कमेटी, श्रवणबेलगोल (कर्नाटक) संस्करण : प्रथम, 2001 ई० मूल्य
: 60/- (डिमाई साईज, पेपर बैक, लगभग 180 पृष्ठ) कन्नड़ भाषा के कवियों में कविवर रत्नाकर वर्णी का नाम प्रथम श्रेणी में लिया
प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 10 125 Jain Education International For Private & Personal Use Only
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