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क्योंकि भावों में अपूर्व तप, अपूर्व ज्ञान, अपूर्व संयम और अपूर्व सदाचरण समाहित रहता है ।
अपरिग्रह - दृष्टि :- संग्रहवृत्ति मूर्च्छा को जन्म देती है । इसलिए वे अंतरंग परिग्रह और बाह्य परिग्रह के ममत्व से निकलकर मर्यादित जीवन जिये; ताकि किसी भी प्रकार का विकार उत्पन्न न हो 1
तत्त्वदृष्टि : अनेकान्त और स्याद्वाद के सूत्रधार ने सभी को एक ही सन्देश दिया कि आत्मतत्त्व का बोध करें। उसके समीप पहुँचे, ताकि आत्मा का विशुद्धस्वरूप परमात्मा बना सके। क्योंकि स्वरूप की दृष्टि से सभी आत्मायें समान हैं। परन्तु उनका चिंतन, मनन पृथक्-पृथक् होते हुए भी एक ही उद्देश्य को चाहता है, वह है मुक्ति ।
इसतरह जिस त्रिशलाकुँवर ने मनुष्यों के बीच में रहकर प्राणीमात्र की संवेदनशीलता को समझा, परखा और उन्हीं के संरक्षणार्थ जो कुछ कहा. वह शब्दों के सागर में समेटा नहीं जा सकता । धन्य है वह माँ त्रिशला प्रियकारिणी, जिसने अपने एक ही पुत्र को समस्त नारियों के बीच में रखकर यह सन्देश दे दिया कि वही नारी धन्य है, जिसने ऐसे नर को जन्म दिया, जो आज भी अपना यश फैला रहा है और आत्मतत्त्व के गुणों की महिमा गा रहा है
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महावीर के प्रति विश्रुत विद्वानों के विचार
भगवान्
महावीर ने प्राणीमात्र के कल्याण के लिये महान् संदेश दिया है, ताकि सभी प्राणी शांति से रह सकें। हम उनके बताये रास्ते पर चलकर उनके योग्य उत्तराधिकारी
बनें ।
— जस्टिस टी. के. टुकोल भगवान् महावीर जिन्होंने भारत के विचारों को उदारता दी, आचार को पवित्रता दी, जिसने इन्सान के गौरव को बढ़ाया, उसके आदर्श को परमात्मपद की बुलंदी तक पहुँचाया, जिसने इन्सान और इन्सान के भेदों को मिटाया, सभी को धर्म और स्वतंत्रता का अधिकारी बनाया, जिसने भारत के अध्यात्म-संदेश को अन्य देशों तक पहुँचाने की शक्ति दी। सांस्कृतिक स्रोतों को सुधारा, उन पर जितना भी गर्व करें, थोड़ा ही है । -डॉ० हेल्फुथफान ग्लाजेनाप्प (जर्मनी)
महावीर का जीवन अनन्तवीर्य से ओत-प्रोत है । अहिंसा का प्रयोग उन्होंने स्वयं अपने ऊपर किया तथा फिर सत्य और अहिंसा के शाश्वत धर्म को सफल बनाया। जो काल को भी चुनौती देते हैं और भगवान् को 'जिन और वीर' कहना सार्थक है । आज के लोगों को उनके आदर्श की आवश्यकता है ।
-डॉ० फर्नेडो बेल्लिनी फिलिप ( इटली )
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Jain E116mal प्राकृत विद्या जनवरी-जून 2001 (संयुक्तांक)
>महावीर
र-चन्दना- विशेषांक
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