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________________ शास्त्राभ्यास की महिमा स्वाध्याय परमं तपः देखो ! शास्त्राभ्यास की महिमा, जिसके होनेपर परंपरा आत्मानुभव दशा को प्राप्त होता है, मोक्षरुप फल को प्राप्त होता है। यह तो दूर ही रहो, तत्काल ही इतने गुण प्रगट होते हैं - क्रोधादि कषायों की तो मंदता होती है। पंचेंद्वियों के विषयों के बारें में प्रवृत्ति रुकती है। अति चंचल मन भी एकाग्र होता है। हिंसादि पांच पापोंमें प्रवृत्ति नहीं होती। स्तोक (अल्प) ज्ञान होनेपर भी त्रिलोक के तीन कालसंबंधी चराचर पदार्थों का जानना होता है। हेय - उपादेय की पहचान होती है। ज्ञान आत्मसन्मुख होता है। अधिक - अधिक ज्ञान होनेपर आनंद उत्पन्न होता है। लोक में महिमा - यश विशेष होता है। सातिशय पुण्य का बंध होता है। 10. - पं. टोडरमलजी 'सम्यग्ज्ञानचंद्किा' तुमने भाग्य से अवसर पाया है, इसलिये तुमको हठ से भी तुम्हारे हित के लिए प्रेरणा करते हैं। जैसे हो सके वैसे इस शास्त्र का अभ्यास करो। अन्य जीवों का जैसे बने वैसे शास्त्राभ्यास कराओ। जो जीव शास्त्राभ्यास करते हैं उनकी अनुमोदना करो। पुस्तक लिखवाना और पढ़ने पढ़ाने वालों की स्थिरता करनी इत्यादि शास्त्राभ्यास के बाह्य कारण उनका साधन करना, क्योंकि उनके द्वारा भी परंपरा कार्य सिद्धि होती है व महत् पुण्य उत्पन्न होता है।। 'सत्तास्वरूप'८८ 601 W. Parker Road, Suite 106 * Plano, Texas 75023 Tel: 972-4244902 * Fax: 972-424-0680 Email: [email protected]; Log on to totally redesigned website www. jaana.org Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003214
Book TitleJain Adhyatma Academy of North America
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Center of Southern America
PublisherUSA Jain Center Southern California
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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