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________________ चालीसा तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी।। इसलिए उन दुष्टों की मृत्यु हुई। इसी प्रकार मेरे शत्रुओं का भी नाश करो। हे माते ! मेरे मनोरथ पूरे करो। चंड मुण्ड जो थे विख्याता। छण महुं संहारेउ तेहि माता।। हे माते ! चण्ड और मुण्ड नामक दैत्यों को, जो (दुष्टता में) अत्यन्त कुख्यात थे, आपने क्षण भर में ही मार गिराया। रक्तबीज से समरथ पापी। सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी।। रक्तबीज जैसा समर्थ पापी राक्षस, जिसका नाम सुनकर देवता, मुनि आदि का ह्यदय तथा पृथ्वी भी कांपने लगी, काटेउ सिर जिम कदली खम्बा। बार बार बिनवउं जगदंबा।। उसके सिर को आपने केले के खम्भे की भाँति काट दिया। हे जगदम्बे ! मैं बार-बार आपकी विनती करता हूँ। जगप्रसिद्ध जो शुभ निशुंभा। छिन में बधे ताहि तू अम्बा।। हे मां ! शुभ और निशुम्भ नामक राक्षसों को, जो जग-प्रसिद्ध व बलशाली थे, आपने एक क्षण में मार गिराया। 59 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003213
Book TitleShardanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnima A Desai
PublisherShikshayatan Cultural Center, Newyork USA
Publication Year2007
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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