SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय संगीत - आध्यात्मिक पृष्ठभूमि संगीत का संबंध आत्मा से है। आत्मानुभूति साधक की साधना का प्रथम सोपान है। मानव शरीर समस्त मानवीय गुणों का आगार है। इसी शरीर के पुनरूत्थान के लिए ही मनीषियों ने विभिन्न प्रकार के साधनों की खोज है। शरीर ही भावनाओं का सृजनकर्ता है। शरीर ही समस्त अवयवों को अन्तर्निहित किए हुए, विभिन्न प्रकार की उर्जाओं का सृजनकर्ता है। उर्जा अपन मू रूप में शरीर, मन, आत्मा की अदृश्य शक्ति है। शारीरिक सबलता ही स्वस्थ उर्जा के उत्पत्ति का स्त्रोत है। यदि शरीर क्षीण हुआ तो संतुलन बिगड़ सकता है। संतुलन ही स्वस्थता का मापदंड है। अत: यह परम आवाश्यक है कि संतुलन को बनाए रखने के हर संभर प्रयत्न किए जाए। इस संतुलन की बागडोर संगीत में है, उसकी साधना में है तथा उसकी प्राप्ति हेतु किए जाने वाले प्रयत्नों में है। इस संगीत में एक अपूर्व आकर्षण के साथ ही साथ आध्यात्म का सर्वागीण बीज तत्व विद्यमान है। अत: सार के रूप में यह कहा जा सकता है कि: संगीत श्रवण श्रोता को समाधि की ओर अग्रसित और ध्यानावस्थित करता है। संगीत देव माया है। सूर्योदय के साथ संगीत पक्षी कलरव में मुखरित होता है और शशि की शीतल किरणों के साथ अपना श्रृंगार बदलता है।भारतीय शास्त्रों में संगीत को योग की सर्वोत्तम किस्म माना गया है। संगीत के अभाव में मनुष्य बिना पूंछ का पशु है। * * * * * * * * * * * * * * * * * * कला - कलाकार जो कला आत्मा को आत्मदर्शन करने की शिक्षा नहीं देती. वह कला ही नहीं है। जो अंतर को देखता है वाह्य को नहीं, वही सच्चा कलाकार है। ------महात्मा गांधी 106 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003213
Book TitleShardanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnima A Desai
PublisherShikshayatan Cultural Center, Newyork USA
Publication Year2007
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy