________________
भारतीय संगीत - आध्यात्मिक पृष्ठभूमि संगीत विभूषण प० कमला प्रसाद मिश्रा -संगीत निर्देशक शिक्षायतन
"आहत' अर्थात वह नाद जो दो के टकराने या घिसने से पैदा होता है। नाद के मुख्य दो प्रकार हैं। पहला प्रकार श्रुति मधुर, दूसरा प्रकार कर्ण कटु। संगीत मनीषियों ने केवल सुनने में सुखद ध्वनि
को ही नाद संज्ञा से विभूषित किया है।
योगिजनों की व्याख्यानुसार अनाहत नाद स्वर में संपूर्ण, सत्स्वरूप है। भगवान शंकराचार्य के अनुसार, स्वयंबू सदाशिव द्वारा कहे गे मन को लय करने के सवा लाख साधनों में नादानुसंधान ही
__ सुलभ और श्रेष्ठ है।
यहाँ यह विचारणीय है कि यही क्योंकर सर्व श्रेष्ठ है? उत्तर यह है कि मनोनिग्रह और लय, गायक के अत्यन्त दुष्कर कार्यों में है, किन्तु आहत नाद और तन्जन्य संगीत का सहार लेने पर मनोनिग्रह
और लय का यह कार्य अत्यन्त सुगम हो जाता है।
हमारे संगीत की लोकरंग के भव भंजक और अन्य उपयोगी क्षमतायें विविध प्रकार की है। इतना ही नहीं आज संगीत सुनाये जाने वाली फसल का अधिक विकसित होना, गाय का अधिक देना,
रोगी का शीघ्र निरोग होना इत्यादि विज्ञान प्रमाणित तथ्य बन चुके हैं।
देश के अनेक महान साधकों ने अपनी साधना का मुख्य आधार संगीत को ही बनाया। देश के विभिन्न कोनों में मुत्तुस्वामी, दीक्षितर, त्यागराज, स्वामी हरिदास, महाप्रभु चैतन्य, सूरदास, नरसीमेहता, कबीरदास, मीराबाई, ज्ञानेश्वर एवं गुरूनानक देव इत्यादि साधकों की साधना का
अवलंब आहत और अनाहत नादोपासना ही दिखाई देती है।
संगीत यानी ईश्वर आराधना, संगीत स्वासोच्छवास, प्राणायाम, चित्तविपिन्नता को दूर कर मन में
अपार शक्ति एवं प्रसन्नता का विस्तार करता है। संगीतकार जब एकाग्र मन से परम - पिता परमेश्वर की आराधना अपने स्वरों की रागमयीधारा से करता है तब यह अगम पथ से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता जाता है। उसका एक एक क्षण अर्पण होता है उसके लिए जिसके लिए,
वह इस संसार में जन्म लेक अपनी यात्रा पूरी कर रहा है। ताल की गति से सारा वातावरण गतिशील होकर, प्रलयाधीन प्रकृति को लयमुक्त करके, प्रभू की अपनी आवाज बहुत दूर से सुनाता
प्रतीत होता है। हो सकता है उसकी रागांजलि, पुष्पांजलि के रूप में स्वीकार कर ली जाए।
105 For Private & Personal Use Only
Jain Education Intemational
www.jainelibrary.org