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आचार्य रत्नप्रभ सरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ८००-८२४
बेटा-सूरिजी ने जो मार्ग बतलाया है वह मुझे अच्छा लगा है और मैं उसी रस्ते पर चलने की प्रतिज्ञा भी कर आया हूँ केवल आपकी अनुमती की ही देर है ।
माता-क्या तू पागल तो नहीं हो गया है । साधुओं के तो यह काम हैं कि लोगों को बहकाना और अपनी जमता बढ़ाना । खबरदार है आइन्दा से साधुओं के पास एकान्त में बैठ कर कभी बात मत करना ले आ जीमलो ( भोजन कर लो)
भीम-( अपने मन में ) अहो २ मोह विकार कैसा मोहनीय कर्म है। कि यदि कोई मर जाय तो रो पीट कर बैठ जाते हैं पर दीक्षा का नाम तक भी सहन नहीं होता है । विशेषता यह है कि धर्म को जानने वाले धर्म की क्रिया करने वालों की यह बात है तो अज्ञ लोगों का तो कहना ही क्य? पर अपने को तो शांति से काम लेना है । माता के साथ भीमादि सबने भोजन कर लिया बाद भी मां बेटा के खाबी चर्चा हुई-वह भी बड़ी गंभीरता पूर्वक
भीमदेव की वैराग्य के बात सर्वत्र फैल गई । शाम को बहुत से लोग सेठ धन्ना के वहां एकत्र हो गये । कइएकों को दुख तो कईएकों को मजाक हो रही थी पर भीमदेव वैरागी बनड़ा बना हुआ सबको यथोचित उत्तर दे रहा था और कहता था कि जब मेरे पैरों में सर्प आया था वह काट गया होता और मैं मर गया होता तो आप क्या करते भला ! इस समय भी आप समझ लीजिये कि भीमदेव मर गया है मैं निश्चय पूर्वक कहता हूँ कि मैं इस संसार रूपी काराग्रह में रहना नहीं चाहता हूँ इतना ही क्यों पर मैं तो
आपसे भी कहता हूँ कि यदि आपका मेरे प्रति अनुराग है तो आप भी इसी मार्ग का अनुसरण कर प्रात्म कल्याण करावे क्योंकि ऐसा सुवर्ण अवसर बार २ मिलना मुश्किल है और यह कोई नई बात नहीं है पूर्व जमाने में हजारों महापुरुषों ने इस मार्ग का अवलम्बन कर स्वकल्याण के साथ अनेक आत्माओं का कल्याण किया। आप दूर क्यों जावें आज हजारों मुनि भूमि पर विहार कर रहे हैं वे भी तो पूर्वास्था में अपने जैसे गृहस्थ ही थे। जब बाल एवं कुंवारावस्था में भी विषय भोग छोड़ दीक्षा ली है तो मुक्त भोगियों के लिये तो यह जरूरी बात है अतः जिसको आत्म कल्याण करना हो वह तैयार हो जाय ।
भीमदेव के सारगर्भित एवं अन्तरिक बचन सुनकर सब समझ गये कि अब भीमदेव का घर में रहना मुश्किल है और इनका वैराग्य बनावटी नहीं है पर आत्मिक है।
सूरिजी का व्याख्यान हमेशा बचता था त्याग वैराग्य और आत्म कल्याण आपका मुख्य ध्येय था जनता पर प्रभाव भी खूब पड़ता था इधर भीमदेव वैरागी बन रहा था और कई लोग उसका अनुकरण करने को भी तैयार हो रहे थे।
एक समय शाह धन्ना और फेफोंदेवी सूरिजी के पास आये और भीमदेव के विषय में कुछ अर्ज की इस पर सूरिजी ने कहा कि भीमदेव के लिये तो में क्या कह सकता हूँ पर मैं श्राप से कहता हूँ कि जब आपकी कुक्ष से उत्पन्न हुआ नवयुवक भीमदेव अपना कल्याण करना चाहता है तो आपको क्यों देरी करनी चाहिये एक दिन मरना तो निश्चय है फिर खाली हाथे जाना यह कहां की समझदारी हैं, अतः आप मेरी सलाह मानते हो तो बिना विलम्ब दीक्षा लेन को तैयार हो जाइये भीम के माता पिता ने सूरिजी से कुछ भी नहीं कहा और वन्दन कर अपने घर पर आगये और भीम को बुला कर कहा कि बोल बेटा तेरी क्या इच्छा है तूं अपने माता पिता को इस प्रकार रोते हुए छोड़ देगा क्या तुमको हमारी जरा भी दया नहीं भीमदेव और उनके माता पिता का संबाद ]
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