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________________ वि० सं० ११२८-११७४ ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास 1 मेला मनावेंगे । इत्यादि राव धुवड़ के शब्द सुन कर दया के दरियाव आचार्य ननप्रभसूरि धुवड़ादि कई भक्त लोगों को साथ लेकर पहाड़ों के बीच रातड़िया भैरूं के स्थान पर आये वहां पर देखा तो चारों ओर मानव • मेदिनी मिली हुई है बहुत से भैरूं भक्त वाममार्गियों के नेता लोग गेरु रंगीन लाल वस्त्र पहिने हुए कमर में बड़े • बड़े घूरे लगाये हुए और मदिरा पान में मस्त बने हुए तीक्ष्ण रे हाथों में लिये हुए भैरूं के मन्दिर के बाहर खड़े थे । भैसों और बकरों के गले में पुष्पों की माला डाली हुई थी और भैरू पूजा की तय्यारी होरही थी कि सूरिजी वहां पहुँच गये। बस सूरिजी को देखते ही उन पाखण्डियों का क्रोध के मारे शरीर लाल बंबुल होकर कम्पने लगा। राव धुवड़ ने आकर सूरिजी से कहा प्रभो ! मामला बड़ा विकट है मुझे भय है कि पाखण्डी लोग मंदिर में मस्त बने हुए कहीं आपकी आशातना न कर बैठे। अतः यहाँ से चल कर अपने स्थान पर पहुँच जाना चाहिये। सूरिजी ने कहा धुवड़ घबराते क्यों हो मनुष्य मरना एकबार ही है आप जरा धैर्य रखो । बस ! अहिंसा के उपासक सूरिजी के पास श्राकर एक वृक्ष की छाया में बैठ गये । सूरिजी ने अम्बा देवी का मन से स्मरण किया तत्काल देवी आदर्शत्व सूरिजी की सेवा में आ उपस्थित हुई। सूरिजी ने कहा- तुम्हारे जैसी समग्दृष्टि देवियों के होते हुए भी इस प्रकार के घोर अत्याचार होते हैं। क्या ऐसे निर्दयी मनुष्यों को तुम शिक्षा नहीं दे सकती हो ? देवी ने कहा हे प्रभो ! इन लोगों के आधीन नीच हलके देव देवी . रहते हैं. उन हलके देवों का सामना करने से देव समुह हमारी इज्जत हलकी समझते हैं। अतः इनकी उपेक्षा ही की जाती है। सुरिजी ने कहा कि खैर, इस विषय में तो फिर कुछ कहेंगे पर यह जो मेरे सामने अत्याचार हो रहा है इसका तो निवारण हो ही जाना चाहिये। देवी ने सूरिजी की आज्ञा शिरोधार्य करली। जब वे लोग भैरू के सामने भैंसे बकरे लेजाकर मारने के लिये तलवारें, छुरे और भाले हाथों में लेकर हाथ ऊंचे उठाये तो हाथ ऊंचे के ऊंचे रह गये और भैरू की स्थापन (मूर्ति) से आवाज निकली कि मैं इस बलि को नहीं चाहता हूँ इन सब पशुओं को यहाँ से शीघ्र छोड़ कर मुक्त करदो वरन मैं तुम्हारा ही भोग लूंगा । सब उपस्थित लोग विचार करने लगे कि अपनी वंश परमपरा से वर्ष में इसी दिन भैंरूं की पूजा की जाती है, बलि न देने पर बड़ा भारी क्षोभ रहता है आज यह क्या चमत्कार है कि एक तरफ हाथ ऊंचे रह गये और दूसरी ओर स्वयं भैरूं बोल कर कहता है कि इन पशुओं को छोड़ दो इत्यादि । पर कई लोगों ने कहा कि अरे एक जैन सेबड़ा यहाँ आकर बैठा है यह सब उसी की तो करामात न हो ? बस, जितने लोग वहां थे उन सबके जच गई कि दूसरा कारण हो ही नहीं सकता है। अतः कुछ आगेवान चलकर सूरिजी के पास आये और प्रार्थना की कि आपने यह क्या किया है? आपने हमारे वंश परम्परा से चले आये हुए मेले को बन्द कर दिया ? सूरिजी ने कहा कि सब लोगों को यहां बुलालो फिर मैं उत्तर दूंगा । बस सब लोग सूरिजी के पास श्रागये । तब सूरिजी ने उन लोगों को उपदेश दिया कि महानुभावो ! आपके लिये संसार में बहुत से पदार्थ हैं। गुड़, खांड, घृत, दूध, मेवा मिष्ठान्न फिर समझ में नहीं आता कि आप लोगों की अमूल्य सेवा करने वाले अबोल पशुओं के कोमल कंड पर निर्दयता पूर्वक छूरा चला कर क्यों मारते हो ? क्या इस अनर्थ का भावान्तर में आपको बदला नहीं देना पड़ेगा पर जब भावान्तर में आपके गले पर इसी प्रकार का छूरा चलेगा तब आपको मालूम होगा कि जीवों की हिंसा के कैसे कटु फल लगते हैं इत्यादि । ऐसा उपदेश दिया कि सुनने वालों की आत्मा भय के मारे कम्पाने लग गई। वे लोग बोले कि महात्माजी ! हम लोग तो हमारी जिन्दगी में इस प्रकार देवी देवताओं को एक वर्ष में कई स्थानों पर बलि दी है क्या इन सबका फल हमें नरक में भुगतना ही पड़ेगा । सूरिजी ने कहा कि तुम बाजार से व्यापारी की दुकान से उधार माल लाते हो एक बार या अनेक बार । ऐसे कर्जे को आप चुकाते हो या नहीं अर्थात् वे उधार देने वाले अपनी रकम आप से वसूल करते हैं या नहीं ? सब लोगों ने कहा हाँ, करजा तो चुकाना ही पड़ता है । तब यह भी तो एक कर्ज ही है इसको भी अवश्य चुकाना पड़ेगा। याद रखो आज तुम मनुष्य हो और यह जीव पशु है पर भावान्तर में यह पशु रातड़िया जाति की उत्पतिary.org १४६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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