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________________ वि० सं० १९०८-११२८ ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ग्रामों के आधार पर जो माल देना किया था, उसकी भी पाटण निवासियों को सप्लाई करना कठिन मालूम पड़ने लगा कारण, पाटण के व्यापारियों को पहिले रुपये देकर फिर ग्रामों से माल खरीदना प्रारम्भ कर दिया अतः पाटण के व्यापरियों को ग्रामों का माल भी नहीं मिल सका। अब निश्चित मुद्दत पर पहिले लिये हुए रुपयों का घृत तेल देना भी उनके लिये विकट समस्या होगई । इधर माल तोलने की मुद्दत भी निकट थी । उस समय रेलवे आदि का कोई साधन तो था ही नहीं कि जिसके आधार पर मुद्दत पर दूर देशों से माल मंगवा कर तोंल देते । जब भैंसाशाह के व्यापारी माल तुलवाने के लिये आये तो पाढण के व्यापरियों ने जो थोड़ा बहुत माल इधर उधर से मंगवा कर इकट्ठा किया था सोही फिलहाल तोलने के लिये तैय्यार होगये । इधर भैंसा शाह के व्यापारियों ने ग्राम के बाहिर नदी के अन्दर दो खड्डे तैयार करवाये और एक खड्डे में खरीद किया हुआ घृत और दूसरे खड्डे में तेल तोल २ कर डालने के लिये पाटण के व्यापारियों को कह दिया । यह देखकर पाटण के व्यापारीगरण अत्यन्त आश्चर्या food हुए कि लाखों करोड़ों रुपयों का घृत तेल इस प्रकार मिट्टी में डलवाने वाले ये समर्थ व्यापारी कौन हैं ? कारण, यह तो उनके लिये एक दम नूतन एवं आश्चर्योत्पादक ही था । आज तक उन लोगों ने लाखों करोड़ों के माल को इतने तेज भाव में खरीद कर के उपेक्षादृष्टि से इस प्रकार मिट्टी में डालने वाले निश्चिन्त एवं शक्तिमन्त व्यापारी को नहीं देखा था। खैर, जो माल उन व्यापारियों के पास हाजिर था उसे तोल, तोल कर नदी के किनारे कृत खड्डों में भर दिया। शेष बहुतसा माल लेना रह गया पर पाटण के व्यापारियों के पास अब अवशिष्ट रुपयों के देने का माल कहां था ? बेचारे सब व्यापारी बड़ी आफत में फँस गये । अपने पास किसी भी प्रकार से अवशिष्ट रुपयों का माल देने का समर्थ साधन न होने के कारण पाटण का व्यापारी- समाज हताश एवं निरुत्साही हो भैंसाशाह के व्यापारियों के पास गया और उनसे पूछने लगे कि आप लोगों का मूल निवास स्थान कहां का है ? आपने यह माल किसके लिये खरीदा है । रुपये देकर या लाखों करोड़ों के द्रव्य को व्यय करके आप लोग माल की खरीदी कर रहे हैं और उसे इस कदर नदी की मिट्टी में क्यों डलवाया जारहा है ? व्यापारियों ने उत्तर दिया- हम लोग स्वनाम धन्य, वीररत्न, व्यापारी समाज के अधिनायक, धन वेश्रमण श्रीमान् भैंसाशाह के व्यापारी एवं मुनीम गुमास्ते हैं, और उनकी आज्ञा से ही सब माल की खरीदी गई है। उनका पुण्य इतना प्रबल है कि नदी की बालुका में डाला हुआ घृत और तेल उनकी दुकान में, जो माण्डवगढ़ में है वहां पहुँच जाता है । जितना आप लोगों ने माल तोला है, उतना ही वहां पहुँच जायगा । शेष जो माल तोलना है वह जल्दी से ही तोल दीजिये जिससे हम शीघ्र ही हमारे निर्दिष्ट स्थान पर पहुंच जायें पाटण निवासी आश्चर्यविमूढ़ हो विचार करने लगे कि न मालूम ऐसा कौनसा व्यापारी है जो इस कदर व्यापारिक कुशलता बतलाते हुए व माल खरीदी करते हुए किञ्चित् भी नहीं हिचकिचाता है । मुनीमों ने नागरिकों को मुग्ध देख कर स्पष्टीकरण करते हुए कहा कि शायद आप लोग जानते होंगे कि एक समय हमारे श्रेष्टवर्य की माता श्रीशत्रुञ्जय की यात्रार्थ संघ लेकर गई थीं और पुनः लौटते हुए पाटण में भी एक दो दिन की स्थिरता को थी । खर्च के लिये द्रव्य समाप्त हो जाने से आपके यहां के किसी प्रतिष्ठित श्रेष्ट से कर्ज मांगा था, इस पर कहा गया था कि भैंसा तो हमारे यहां पानी भरता है, उसी नरपुङ्गव भैंसाशाह के हम मुनीम हैं । अब आप देर न कीजिये और शीघ्र शेष माल तोल दीजिये कि हमको रुकना न पड़े । अब तो पाट के गुर्जर व्यापारियों की आंखें खुल गई । उन व्यापारियों में श्रेष्टिवर्य ईश्वर भी शामिल थे, उन्हें अपनी भूल स्पष्ट नजर आने लग गई। अब उनके पास कोई दूसरा साधन न होने से उन व्यापारियों ने क्षमा मांगते हुए निवेदन किया कि हमने आसपास के ग्रामों में भी माल लाने के लिये आदमी भेजे परन्तु आपने तो वहां से भी माल खरीद लिया अतः हम सब तरह से लाचार हैं। आप अपनी रकम वापिस १४६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only घृत तेल की खरीदी और गुर्जरा www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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