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________________ वि० सं० १०३३-१०७४] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास २३-एमावती के प्राग्वट हरपाल की पता ने तलाव खुदाया। २४-राणकपुर के संचेती नाथा ने दुकान में करोड़ों का दान दिया । २५--पाली का पल्लीवाल सांगा ने दुका। में अज वस दान में दिये। २६-वीरपुर का अार्य नानग युद्ध में काम आया उनकी स्त्री सती हुई। २७-उपकेशपुर का चोरड़िया भारमल शुद्ध में काम 'पाया उसकी स्त्री सती हुई। २८-चन्द्रावती का प्राग्वट कल्हण युद्ध में काम आया उसकी स्त्री सती हुई। संतालीसवें पट्ट प्रभाकर, सिद्ध सूरीश्वर नामी थे। दथे दर्शन ज्ञान चरण में, शिव सुन्दरी के कामी थे । ग्रन्थ निर्माण किये अपूर्व, कई ग्रन्थ कोष थपाये थे। ___ उन्नति शासन की करके, मन्दिरों पे कलश चढ़ाये थे । जम्जुनाग ज्योतिष विधा में, सफल निपुणता पाई थी। बोद्रवा में जाकर, विप्रों से, विजय भेरी बजवाई थी। जो नहीं करने देते थ यहाँ पर, गन्दिर प्रतिष्ठा करवाई थी। ग्रन्थ किया निर्माण आपने, विद्वता की बया दिखाई थी ।। इति श्रीभगवान पार्श्वनाथ के सेंतालीसवें पट्टधर आचार्यश्री सिद्धसूरीश्वर महाप्रभाविक आचार्य हुए wwwmarwwwmomwwwwww १४३२ Jain Education international आचार्यश्री के शासन में संघादि शुम कार्य ... For Private & Personal use only W.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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