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________________ वि० सं० १०३३-१०७४ ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास इत्यादि, वि० सं० १८४२ तक की वंशांवलियां लिखी मिलती हैं । राव महाराव का पुत्र शिव और शिव का पुत्र सांवत था। सांवत ने सत्यपुर को अपना निवास स्थान बना लिया था। सांवत को साङ्गोपाङ्ग भक्ति से प्रेरित हो देवी ने गरुड़ पर सवार हो रात्रि के समय स्वप्न में सावत को दर्शन दिये । उस समय सांवत अर्धनिद्रा निद्रित था । अतः सवार को न देख गरुड़ को ही देख सका । इतने में यकायक आवाज हुई भक्त ! तेरे गायें बान्धने के स्थान की भूमि में एक गुप्त निधान है। वह निधान तेरी भक्ति से प्रसन्न हो मैं तुझे अर्पण करती हूं। इस द्रव्य को धर्म कार्य में लगाकर अपने जीवन को सफल बनाना, इतना कह कर देवी अदृश्य होगई। सांवत जागृत होकर चारों ओर देखने लगा तो न दीखा गरुड़ और न दीखा कहने वाला ही । तथापि सांवत ने इसको शुभ स्वप्न समझ शेष रात्रि को धर्मध्यान में व्यतीत की। प्रातःकाल होते ही उसने सीधे मन्दिर में जाकर भगवान के दर्शन किये । पास ही में स्थित पौषधशाला में विराजिन गुरु महाराज के दर्शन कर उनकी सेवा में रात्रि को आये हुए स्वप्न का सारा वृत्तान्त कह सुनाया। सांवत के मुख से स्वप्न वृत्त को श्रवण कर गुरु महाराज ने कहा-सांवत ! तू बड़ा ही भाग्यशाली है । तेरे पर भगवती देवी की पूर्ण कृपा हुई । पर ध्यान रखते हुए इसका सदुपयोग सदा गर्म कार्यों में या शासनोत्कर्ष मेंही करना। गुरुदेव के शुभ वचनों को शिरोधार्य कर गुरु प्रदत्त धर्मलाभ रूप शुभाशीर्वाद को प्राप्त कर सांवत अपने घर पर चला आया। ___जिस रात्रि में सांवत ने देवी कथित निधान का स्वप्न देखा, उसी रात्रि में सांवत की स्त्री शान्ताजो क्षत्रिय वंश की थी-स्वप्न में पार्श्व प्रभु की प्रतिमा को देखकर जागृत हुई। जब उसने अपने पतिदेव से अपने स्वप्न की सारी हकीकत कही तो सांवत के हर्ष का पारावार नहीं रहा । हर्षोन्मत्त सांवत ने अपनी पत्नी को कहा-प्रिय ! तू भाग्यशालिनी है। तेरी कुक्षि में अवश्य ही कोई भाग्यशील जीव अवतरित हुआ है। जिसके प्रभाव से जैसा तुझे स्वप्न आया है वैसे मुझे भी निधान प्राप्त होने रूप एक महा स्वप्न अाया है । समयज्ञ सावंत देवी के बताये हुए स्थान की भूमि को खोदकर निधान निकाल लाया वस, अक्षयनिधि की प्राप्ति के साथ ही साथ जनोपयोगी, पुण्य सम्पादन करने योग्य कार्य भी प्रारम्भ कर दिये । सांवत को कोई इस स्थिति के सम्बन्ध में पूछता तो वह कहता था कि यह सब गरुड़ का प्रताप है। अतः कालान्तर में लोग उन्हें गरुड़ नाम से सम्बोधित करने लग गये। आगे चलकर तो आपकी सन्तान भी गरुड़ आति के नाम से मशहूर हो गई । इस प्रकार ओसवालों में हंसा, मच्छा, काग, चील, मन्नी, सांड, सियाल आदि कई जातियां बन गई। इधर सांवत के प्रबल पुन्योदय से आचार्यश्री ककसूरिजी महाराज का पधारना सत्यार में होगया। सांवत ने सवालज्ञ द्रव्य व्यय कर सूरिजी :का बड़े ही समारोह पूर्वक पुर-प्रवेश करवाया। आचार्यश्री के उपदेश से शत्रुञ्जय की यात्रार्थ एक विराट् संघ निकाला जिसमें नव लक्ष द्रव्य व्यय किया । स्वधर्मी बन्धुओं को स्वर्ण मुद्रिकाओं की प्रभावना दी । इस तरह के अनेक कार्यों से जैनधर्म की प्रभावना के साथ ही साथ स्वयं ने अक्षय पुण्य सम्पादन किया। इसके विषय में कई कवित्त भी मिलते हैं जिसमें इनको चारणों ने गरुड़ नाथ श्रीकृष्ण की उपमा दी है। सांवत की स्त्री शांता ने शुभ समय में एक पुत्र को जाम दिया जिसका नाम पारस रक्खा गया। जब पारस क्रमशः आठ वर्ष का हुआ तब सत्यपुर के राजा के अनबन के कारण सांवत ने रात्रि समय सत्यपुर का त्याग कर नागपुर की ओर पदार्पण किया। जब सत्यपुर नरेश को इस बात की खबर हुई तो उन्होंने चार सशस्त्र सवारों को सांवत का पीछा करने के लिये भेजा । सांवत को मार्ग में ही सवार मिल गये अतः उन्होंने नृपादेशानुसार उनको पुनः सत्यपुर की ओर चलने के लिये जबरन प्रेरित किया। सवारों की उक्त बात को सांवत ने स्वीकृत नहीं किया तब परस्पर दोनों में मुठभेड़ होगई । सांवत भी वीर एवं महापराक्रमी था १४१५ Jain Education International सांवत की स्त्री शान्ता के पुत्र पारस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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