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________________ वि० सं० १०११-१०३३] [भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास तत्पुत्राभ्याँ सं० सीडा सदाम्यां सांव। म० कभी-नारा लाखादि सुकुटम्ब युताभ्यां श्रीनन्दकूलवत्यां पुर्या सं०६४ श्रोवरामसारमंत्रशक्तिलगानीटयां सायर कारित देवकृतिकाबद्वारितः सायर नाम श्रीजिनवसत्यां श्रीयादीश्वरस्य स्थापना कारिता कताश्री शान्ति पूरि पट्टे देव सुन्दर इत्यपरशिष्य नाम : प्रा० श्रीईश्वरसूरिभिः इति लघुनास्तिरिय लि. आचाच श्रीईश्वरसूरि गा उत्कीर्णा सूत्रधार सागकेन ।। शुभम् ।। (श्री नाड.लाई ग्राम के मन्दिर में वर्तमान है) "इति महाप्रभाविक प्राचार्य यशोभद्रसूरि का संक्षिप्त जीवन" जैसे मुनि सोमसुन्दर ने आत्मीय चमत्कार से देव के जरिये श्री नन्दीश्वरहोप के ५२ जिनालय की यात्रा खूब आनन्द के साथ की इसी प्रकार आचार्य यशोभद्रसूरि भी अपने प्रात्सीय चमत्कारों से प्रतिदिन पंच महातीर्थों की यात्रा किया करते थे इन महा पुरुषों के अलावा भी बहुत से प्रतिभाशाली आचार्य हुए हैं कि जिन्होंने अपने सत्यशील एवं ब्रह्मचर्य के प्रकाण्ड प्रभाव से नरनरेन्द्र तो क्या पर सुरसुरेन्द्र को पायनमी बना कर प्रशासन की प्रभावना के कई कार्य किये थे। आचार्य वीरसूरि का चत्र हम ऊपर लिख आये हैं कि आपने भी देवता की सहायता से अष्टाप : तीर्थ की यात्रा की थी और वहाँ से वापिस लौटते समय देवताओं के प्रभु को चढ़ाघे चावल ले आये थे जैसे सोमसुन्दर मुनि पुष्प लाया था अस्तु । आर्य देव गुप्तरि के शासन में ऐसे ऐसे कइ प्रतिभाशाली मुनि हुए थे और ऐसे चमत्कारी मुनियों के प्रभाव से ही शासन की सपत्र विजय विजयती फहरा रही थी सूरिजी को आज्ञावर्ती अन्योन्य मुनिराज आदेशानुसार अन्य प्रान्तों में विहार करते हुए जैन शासन का उद्योत करते थे अनेक मांस मदिरा सेवियों को प्रतिबोध देकर महाजनसंघ के शामिल कर उसकी संख्या में खूब वृद्धि कर रहे थे । एक समय सूरिजी महाराज विहार पुर पधारे । तथा अन्यत्र विहार करने वाले मुनिराज भी सूरिजी के दर्शनार्थ नागपुर में आकर सूरिजी के दर्शन किये उस समय का नागपुर अच्छा नगर था । उपकेशवंशियों की आबादी का तो वह एक केन्द्र स्थान ही था। धन, जन एवं व्यापारिक स्थिति में सब से सिरताज था । श्रीसंघ के अत्याग्रह से वह चातुर्मास तो सूरीश्वरजी ने नागपुर में ही कर दिया। आदित्य नाग गौत्रीय गुजेच्छा शाखा के शा० देवा ने सवा लक्ष द्रव्य व्यय कर श्री श्रुतज्ञान की आराधना की । महाप्रभावक भगवती सूत्र को बाँचकर प्राचार्यश्री ने संघ को सुनाया। इसके सिवाय भी कई भावुकों ने अनेक प्रकार से तन, मन एवं धन से लाभ उठाया। विशेष में प्राचार्यश्री का प्रभावोत्पादक व्याख्यान श्रवण कर भद्र गौत्रीय मन्त्री करमण के पुत्र राज्जन ने छ मास की विवाहित पत्नी को त्याग कर दोनों ने सूरिजी की सेवा रे भगवती, भव विध्वंसिकी दीक्षा लेने का निश्चय किया। चातुर्मासानन्तर उन भावुकों का अनुकरण कर करीब १६ स्त्री पुरुष दीक्षा के लिये और भी तैय्यार हो गये । शुभ मूहूर्त एवं स्थिर लग्न में सूरिजी ने सज्जन प्रभृति १६ वैरागियों को दीक्षा देकर उनका आत्म कल्याण किया। उसी शुभ मुहूर्त में बप्पनाग गौत्रीय नाइटा शाखा के धर्मवीर शा० दुर्गा के बनाये महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई जिससे जैनधर्म को आशातीत प्रभावना हुई । तत्पश्चात् सूरिजी ने मुन्धपुर, कुर्चपुर, मेदिनीपुर, फलवृद्धि, हर्षपुर, खरकुम्पनगर, शंखपुर, आशिकादुर्ग, माण्डव्यपुर होते हुए उपकेशपुर की ओर पधारे । उपकेशपुर निवासियों को इस बात की खबर पड़ते ही उनके धर्मात्साह का पारवार नहीं रहा । सुवन्ति गौत्रीय शा० लाला ने तीन लक्ष द्रव्य व्यय कर सूरिजी के नगर प्रवेश का शानदार महोत्सब किया। सूरिजी ने भी चतु. विध श्रीसंघ के साथ भगवान महावीर एवं आचार्य रनप्रभसूरि की यात्रा कर आगत जन समाज को संक्षिप्त किन्तु सारगामत माङ्गलिक देशना दी। सूरिजी म० का इस समय उपकेशपुर में बहुत ही असे से पधारना हुआ था अतः जनता के हृदय में अत्य त हप एवं धर्म-स्नेह बढ़ गया। देवी सचायिका भी यदा कदा वन्दन के लिये आचार्य श्री की सेवा में उपस्थित हो कर पुण्य-सम्पादन किया करती थी। सूरिजी भी उनसे शासन १४०६ प्राचार्य श्री का नागपुर में पधारना For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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