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________________ वि० सं० १५२-१०११] [भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास सा दरवाजों के चारों तरफ के पदार्थ हैं उनको देख मैं मूल मन्दिर में गया वहां सोहल योजन का मणिपीठ है उसके ऊपर एक देवच्छन्दा जो सोलह योजन लम्बा चौड़ा और साधिक सोलह योजन ऊंचा है जिसके अन्दर शांतमुद्रा पद्मासन एवं वीतराग भाव को प्रदर्शित करने वाली १०८ जिन प्रतिमाएं विराजमान है जिनके दर्शन करते ही मैं तो आनंद सागर में मग्न हो गया। मेरे आत्मा के एक-एक प्रदेश में वीतराग भावना का प्रादुर्भाव हुआ। और वीतराग वर्णीत आगमों के लिये मैं बार-बार विस्मित चित्त होने लगा । खैर, जब मैं देव के दूसरे अंजनगिरी पर जाकर दर्शन किया तो जो रचना पहले अंजनगिरी पर है वह दूसरे और बाद में तीसरे और चौथे अंजनगिरी पर देखी। दर्शन चैत्यवन्दन स्तुति कर अपने जीवन को कृतार्थ बनाया। प्रत्येक अंजनगिरी पर्वत के चारों ओर चार-चार बावड़ियां हैं जो एक लक्ष योजना लंबी पचास हजार योजन चौड़ी और एक हजार गहरी तोरण दरवाजा ध्वजा चामर छत्र अष्ठाष्ठ मंगलीक से सुशोभित है प्रत्येक वापि के मध्य भाग में एक-एक दधि मुखा पर्वत है एक हजार योजन भूमि में और ६४००० योजन भूमि से ऊंचा दस हजार योजन का मूल में चौड़ा तथा इतना ही ऊपर के तला में चौड़ा है सफेद दही के समान रत्नों के वे पर्वत हैं अर्थात् चार अंजनगिरी के चारों तरफ १६ बावड़ियां और सोलह बावड़ियों में सोलह दधिमुखा पर्वत हैं और उन १६ पर्वतों र १६ सिद्धायतान सब चार-चार दरवाजे वाले जैसे अंजनगिरी के मंदिर का मैंने पूर्व में वर्णन किया है उसी प्रकार के ही ये मंदिर हैं। . पूर्व कथित १६ बावड़ियों के अन्तर में दो-दो कनकगिरी पर्वत आये हैं और ऐसे ३२ कनकगिरी पर्वत हैं। ये एक-एक हजार योजन के ऊंचे हैं और उतने ही चौडे पलकाकार सर्व कनकमय ३२ कनकगिरी पर ३२ जिन मन्दिर हैं जो पहले कहे प्रमाण वहां भी जाकर मैंने बड़े ही हर्ष के साथ दर्शन चैत्यवन्दन स्तुतियें की जिसका आनन्द या तो उस समय मेरी आत्मा ही अनुभव कर रही थी सो जानती है या परमात्मा जानते हैं इन ५२ पर्वतों के अलावा चार रति करे पर्वत जो रत्नोंमय हैं उन चारों पर्वतों के चारों ओर सोलह राजधानियां हैं जिनमें आठ तो शक्रेन्द्र की अग्नम हेषियों और आठ ईशानेन्द्र की अग्रम हेषियों को है जब भगवान के कल्याणक दिनों में तथा अन्य पर्वादिक में वे देवांगना नन्दीश्वर में जाती है तब ये देव देवियों अपनी राजधानियों में विश्राम लेती है बनखण्डों में आराम करती हैं इत्यादि उन नन्दीश्वर द्वीप के महात्म्य का कहां तक वर्णन किया जा सकता है यदि देवता के लौट कर वापस आने की अवधि नहीं होती तो मैं वहां से वापिस आने की इच्छा तक भी नहीं करता पर क्या किया जाय देव के साथ मुझे वापिस आना पड़ा मैने वहां से रवाना होते २ देखा कि आकाश के अन्दर कई चारण मुनि भी शायद् वहां यात्रार्थ आरहे थे मैंने वहाँ की स्मृति के लिये एक पुष्प लाया हूँ जो इस मकान को ही नहीं पर मोहल्ले तक को सौरभमय बना रहा है । मुनि सोमसुन्दर ने ऊपर बतलाया हुआ नन्दीश्वर द्वीप के पदार्थों को एकेन्द्र गिनती निम्न लिखित है: १-चार अंजनगिरी पर्वत ऊंचा ८४००० योजन प्रमाण । २-सोलह वापियों-लाख योजन लंबी पचास हजार योजन चौड़ी। ३-सोलह दधिमुख पर्वत ऊंचा ६४००० योजन । ४-बत्तीस कनकगिरी पर्वत ऊंचा एक हजार योजन । ५--पूर्वोक्त बावन पर्वतों पर बावन जैन मंदिर १००-५०-७२ योजन । ६-पूर्वोक्त बावन जैन मन्दिर चौमुख चार हार वाले हैं। ७--पूर्वोक्त बावन मन्दिरों में ५६१६ जिन प्रतिमाएं हैं वे जघन्य सात हाथ उत्कृष्ट पाँच सो धनुष की सर्वरत्ननोमय पद्मासन पर विराजमान हैं। ८-सब मन्दिरों के २०८ मुख मंडप हैं। --मुख मंडप के आगे २०८ प्रक्षेप घर मण्डप हैं। १४०० For Private a personal use नन्दीश्वर द्वीप में क्या क्या पदार्थ है ? Jain Education International
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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