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________________ वि० सं. ९५२-१०११] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास परमा ने २५-कोरंटपुर प्राग्वट जाति के नारा ने दीक्षा ली २६-वीरपुर झाला ने २७-कीरादपुर वरधा ने २८-प्रल्हादनपुर अमारा ने २६-ढेलडिया नागजी ने ३०-पुनासरी श्रीमाल सहजा ने ३१-चोकड़ी तोड़ा ने ३२-मादलपुर गुणाढ़ ने ३३-तीतरी पारख भीमा ने ३४-डामरेल काग मेधा ने ३५-गोसलपुर बोगड़ा रूपा ने ३६-भरोंच गांधी गोरा ने ३७-सोपार बोहरा . माना ने ३८-कांकाणी कुम्मट दुर्गा ३६-झमाग्राम चोरड़िया इनके अलावा अन्य प्रान्तों में तथा पुरुषों के साथ बहिनों ने भी बड़ी संख्या में सूरिजी के शासन में आत्म कल्याण के उद्देश्य से भगवती जैन दीक्षा स्वीकार की थी जब कि आचार्य देव ने ५६ वर्ष जितना दीर्घ समय सर्वत्र भ्रमन किया आपका उपदेश भी प्रायः त्याग वैराग्य और आत्म कल्याण को लक्ष में रखकर ही हुआ करता था दूसरे उस जमाने के जीव भी हलुकर्मी होते थे कि उनको उपदेश भी शीघ्र लग जाता था। आचार्य श्री के ५६ वर्षों के शासन में मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठाएं १-नंदपुर के श्रेष्टि जाति के सहदेव ने भगवान पार्श्वनाथ का मन्दिर की प्र० २-रनपुर पुरा ने ३-राजपुर के संघवी लाल ने महावीर ४-दान्तिपुर के प्राय , जोधा ने ५--बेनातट श्रीश्रीमाल जसा ने ६-बीसलपुर के गांधी जेहल ने স্থানীশ্বৰ ७-शंखपुर के ८-ऊचकोट के अग्रवाल पोमा ने ह-रेणुकोट के कल्हण ने नेमिनाथ १०-वडियार करणावट ,, भोपाल ने शान्तिनाथ ११-तीतरी देसरडा , सज्जन ने महावीर १२-वीरपुर विनायकिया,, मुंझल ने १३-गोसलपुर के मालगढ़ा, रामपाल ने १४-भद्रावती के गणपत ने १५-खीखरी के बोहथ ने पाश्वनाथ १६--मधुपुरी के प्राग्वट , खेतसी १३८६ सूरीश्वरजी के शासब में मन्दिरों की प्रतिष्ठाएँ Jain Education international राखेचा डुगर ने रांका श्रीमाल, For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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