________________
प्राचार्य कक्कसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १३१२-१४११
अमर बना दी तथा प्राचार्य पद से विभूषित हो चातुर्दिक में जन कल्याण करते हुए अपने वर्चस्व से सबको नतमस्तक बनाते हुए पुनः उसी नगर को पावन करे तो कौन ऐसा कमनसीब होगा कि उसको इस विषय में आनंद न हो ? किस हतभागी को अपने देश कुल एवं नगर के नाम को उज्वल करने वाले के प्रति गौरव न हो ! वास्तव में ऐसा समय तो नगर निवासियों के लिये बहुत ही हर्ष एवं अभिमान का है । अतः गोसलपुर का सकल जन समुदाय (राजा और प्रजा ) आचार्यश्री के पदार्पण के समाचारों को श्रवण करते ही आनन्द सागर में गोते लगाने लग गया। क्रमशः अत्यन्त समारोह पूर्वक आचार्यश्री का नगर प्रवेश खूब महोत्सव किया । सूरिजी ने भी स्वागतार्थ श्रागत जन मण्डली को प्रारम्भिक माङ्गलिक धर्म देशनादी ! आचार्यश्री की पीयूष वर्षिणी मधुर, ओजस्वी व्याख्यान धारा को श्रवण कर गोसलपुर निवासी आनन्दोद्रक में श्रोत प्रोत हो गये । किसी की भी इच्छा आचार्यश्री के व्याख्यान को छोड़ कर जाने की नहीं हुई। वे सब सूरिजी के वचनामृत का पिपासुओं की भांति अनवरत गतिपूर्वक पान करने के लिये उत्कण्ठित हो गरे । कालान्तर में सबने मिलकर चातुर्मास का लाभ देने की आग्रहपूर्ण प्रार्थना की। सरिजी ने भी धर्मलाभ को सोचकर गोसलपुर श्रीसंघ की प्रार्थना को सहर्ष स्वीकृत करली । क्रमशः आचार्यश्री के त्याग वैराग्यादि अनेक वैराग्योत्पादक, स्याद्वाद, कर्मवादादि तत्त्व प्रतिपादक, सामाजिक उन्नतिकारक व्याख्यान प्रारम्भ हो गये । सूरिजी के वैराग्यमय व्याख्यानों से जन समुदाय के हृदय में यह शंका होने लगी कि सूरिजी अपने साथ ही साथ अन्य लोगों को भी संसार से उद्विग्न कर कहीं दीक्षित न करलें ? कोई कहने लगे इसमें बुरा क्या है ? हजारों मनुष्य ऐसे ही मर जाते हैं। ऐसा कौन भाग्यशाली है कि आचार्यश्री के समान पौदगलिक सुखों को तिलाअलि दे विशुद्ध चारित्र वृत्ति का निर्वाह कर स्वात्मा के साथ अन्य अनेक भव्यों का भी कल्याण करे । देखो, मोहन ने दीक्षा ली तो क्या बुरा किया ? अपने माता पिता एवं कुल जाति के साथ ही साथ सारे गोसलपुर के नाम को उज्वल बना दिया । धन्य है ऐसे माता पिताओं को एवं धन्य है ऐसे महापुरुषों को। इस प्रकार आचार्यश्री की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी। ___आचार्यश्री का मोहनी मन्त्र (वैराग्य ) गोसलपुरवासी बहुत से भावुकों पर पड़ ही गया । करीब ११ भाई, बहिन दीक्षा के उम्मेदवार बन गये । कई मांस मदिरा सेवी भी अहिंसा धर्म के अनुयायी हो गये । चातु. मासानन्तर ११ भावुकों को दीक्षा दे सूरिजी ने पञ्जाब प्रान्त की ओर पदार्पण किया। दो चातुर्मास पञ्जाब प्रान्त में करके आचार्यश्री ने खूब ही धर्म प्रचार किया । श्रावस्ति नगरी में एक संघ सभा की जिसमें कुरु, पञ्चाल, शूरसेन, सिन्ध वगैरह में विहार करने वाले मुनिवर्ग व आसपास के प्रदेश के श्राद्ध समुदाय भी एकत्रित हुए । सूरिजी के उपदेश से श्रीसंघ में अच्छी जागृति हुई। मुनियों के हृदय में धर्मप्रचार का नवीन उत्साह प्रादुर्भूत होगया । संघ सभा की सम्पूर्ण कार्यवाही समाप्त होने के पश्चात् आगत श्रमण समुदाय के योग्य मुनियों को उपाध्याय, गणि, गणावच्छेदक आदि पदवियों से विभूषित कर उनके उत्साह में वर्धन किया । वहां से तीर्थयात्रा करते हुए श्राप मथुरा में पधारे। वहां श्रीसंघ ने श्रापका अच्छा सत्कार किया। जिस समय सूरिजी मथुरा में विराजते थे उस समय मथुरा में बोद्धों का कम पर वेदान्तियों का विशेष प्रचार था तथापि जैनियों का जोर कम नहीं था। जैन लोग बड़े २ व्यापारी उत्साही एवं श्रद्धा सम्पन्न थे।
प्राचार्यश्री कक्कसूरिजी म० प्रखर धर्म प्रचारक थे। आप जहां २ पधारते वहां २ खूब ही धर्मोद्योत करते । मथुरा में आपने पुनः जैनत्व का विजयडका बजवा दिया। मथुरा में आई हुई धार्मिक शिथिलता को आपने निवारित कर सुप्त जन समाज को जागृत किया व धर्म कार्य में कटिबद्ध होने के लिये प्रेरित किया। पश्चात् मथुरा से विहार कर क्रमशः छोटे बड़े ग्राम नगरों में पर्यटन करते हुए मत्स्य देश की राजधानी वैराट नगर में पधारे। वहां से अजयगढ पधार कर सरिजी ने चातर्मास वहीं पर कर दिया। मरुधर वासियों को आचार्य श्री के अजयगढ़ में पवारने की खबर लगते ही बहुत आनंद आगया । सूरिजी के दर्शनार्थ पाने प्राचार्य कक्कसूरिजी का विहार क्षेत्र
१३७३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org