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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ोसवाल सं० १२६२-१३५२
११-उपकेशपुर के डागरेचा , आसलने १२-रत्नपुर के वागड़िया , भीमाने १३-पद्मावती के पल्लीवाल , रोडाने १४-चित्रकूट के प्राग्वट
वालाने १५-डिडूपुर के प्राग्वट
धन्नाने १६-मदनपुर के विरहटगौत्री शांखला की विधवा पुत्री ने एकलक्ष द्रव्य से वापी करवाई। १७-मालपुर के प्राग्वट जाजा की धर्म पत्नी ने तीन लक्ष में एक तलाव बनाया। १८-उपकेशपुर के तांतेड़ दाना ने अपने पिता के श्रेयार्थ शत्रुञ्जय पर बावड़ी वधाई। १६-नागपुर के पारख रघुवीर ने गायों चरने की भूमि खरीद कर गोचर पनाया। २०-धर्मपुर के डिडू मैकरण ने सदैव के लिये शत्रुकार खोल दिया। २१-पल्हिकापुरी के मंत्री गुणाकार ने दुकाल में एक करोड़ द्रव्य व्ययकर लोगों को प्राणदान दिया। २२-हंसावली का संचेती लाढ़ इक ने दुकाल में सर्व स्वार्पण किया कुलदेवी ने अक्षय निधान वानर्थ । २३-चन्द्रावती के प्राग्वट भैराकों पारस प्राप्त हुआ जिससे जनसंहार कहत में राजा राणों का अन्न दाता । २४-शिवगढ़ का श्रेष्टि०-सारंगा युद्ध में काम आया उसकी दो स्त्रियाँ सती हुईं छत्री पूजी जाती है। २५-डमरेल का भाद्र गो०-मंत्री सल्ह युद्ध में काम आया उसकी स्त्री सती हुई। २६-उपकेशपर का चिंचट-गणपत यद्ध में काम आया उसकी स्त्री सती हई। २७-चन्द्रावती का प्रावट-मोकल युद्ध में काम आया उसकी पत्नी सती हुई माघ सप्तमी का मेला लगे। २८-कोरटपुर का श्रीमाल-लाखण युद्ध में काम आया उसकी पत्नी सती हुई छत्री बनाई थी।
चउ चालीसवें सिद्ध सूरीश्वर श्रेष्टि कुल दिवाकर थे,
दर्शन ज्ञान चरित्र बारधि, गुण सब ही लोकोत्तर थे । थे वे पयनिधि करूणा रसके, पतित पावन बनाते थे,
ऐसे महापुरुषों के सुन्दर, सुरनर मिल गुण गाते थे । इति भगवान पार्श्वनाथ के चौचालीसवें पट्ट पर प्राचार्य सिद्धसूरि महान् प्रतिभाशाली आचार्य हुए।
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सूरीश्वरजी के शासन में शुभ कार्य
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