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________________ वि० सं०८६२-६५२ ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास आपने अपने व्याख्यान में ध्येय व ध्यान के विषय में जो कुछ फरमाया था उसे मैं अच्छी तरह से समझना चाहता हूँ । सूरिजी ने भी ईश्वर के सत् स्वरूप को समझाते हुए कहा रावजी ! प्रत्यक्षतो न भगवान् ऋषभो न विष्णु रालोक्यत न च हरो न हिरण्य गर्भः तेषां स्वरूप गुणमागम सम्प्रभावात । ज्ञात्वा विचार मत कोऽत्र परापवादः।। अर्थात्-इस समय प्रत्यक्ष में न तो भगवान ऋषम आदि देव हैं और न भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, महा. देव ही हैं, पर उनके जीवन के विषय को आगमों से तथा उनकी श्राकृति ( मूर्ति ) से उनकी पहिचान की जा सकती है कि ईश्वरत्व गुण किस देव में है ? जिस देव में राग, द्वेष, मोह प्रेम, क्रीड़ा, इच्छादि कोई भी विकार नहीं वही सच्चा देव है। उनकी ही भक्ति, भजन, उपासना करने से जीवों का कल्याण होता है। इस तरह ईश्वर के सकल गुणों का आचार्यश्री ने खूब ही स्पष्टीकरण किया। आचार्यश्री का कहना राव सालू के समझ में आगया। उसने अपने कदम्ब सहित जैन धर्म को स्वीकार कर लिया। अतः प्रभृति वह वीतराग देव का अनन्य भक्त व परमोपासक बन गया। राव सालू जैसे द्रव्य सम्पन्न था वैसे पुत्रादि विशाल परिवार का स्वामी भी था। उसके पाँच सुयोग्य, वीर पुत्र थे। राव सालू को आचार्यश्री के व्याख्यान में इतना रस अाता था कि वह प्राचार्यश्री के साथ धर्मालाप करने में अपने बहुत से समय को लगा देता था। धर्म प्रेम के पवित्र रंग से वह रंगा गया । जैन धर्म के प्रति उसकी अपूर्व श्रद्वा एवं दृढ़ अनुराग हो गया । धर्म का प्रभाव तो उस पर इतना पड़ा कि-राव सालू ने भगवान् ऋषभदेव का एक मन्दिर बनवाया। शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा के लिये संघ निकाल कर स्वधर्मी भाइयों को पहिरावणी दे अपने जीवन को कृतार्थ किया । क्रमशः सब तीर्थों की यात्रा कर अतुल पुण्य सम्पादन किया। इस तरह राव सालू ने अपने जीवन में अनेक धर्म कार्य किये । राव सालू की सन्तान सालेचा जाति के नाम से पुकारी जाने लगी। इस घटना का समय वंशावलियों में वि० सं०६१२ का लिखा है । सालेचा जाति को वंशावली बहुत ही विस्तार पूर्वक मिलती है-तथाहि राव सालू वि० सं० ११२ सांगण रावल नोंधण मुरारी माधू (पार्वमन्दिर ) (व्यापार) कोक काल्हण (व्यापार) अरमी आदू आदू संगार खंगार दारी झालो जोगड़ (महावीर का मन्दिर) (शत्रुञ्जय संघ) वीरम संगो आनो मानो जैतो देवो नारायण भीमा खेत गान (शत्रुञ्जय संघ ) कीतू सांगो wwwwwwwwwwwwwwwwww (आगे बहुत विस्तार से है) सालेचा जाति की वंशावली ... Jain Edu१३५४ national For Private & Personal Use Only
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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