SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य सिद्धसरि का जीवन [ओसवाल संवत् ७१०-८०० समय उजैन नगरी में पधारे । श्री संघ ने आपका अच्छा स्वागत किया तथा श्रीसंघ की आग्रह पूर्वक विनती होने से वह चतुर्मास आपने उज्जैन में ही किया। आपके विराजने से कई प्रकार से धर्म की प्रभावना हुई । उज्जैन के चतुर्मास में आपने विचार किया कि कई वर्ष होगये हैं प्राचार्यों का दक्षिण की और विहार नहीं हुआ है। वहां कई मुनि विचरते हैं उनका क्या हाल है ? अनः दक्षिण की ओर विहार करना जरूरी है। उस अवसर पर देवी सच्चायिका भी सूरिजी को बंदन करने को आई थी । सूरिजी ने देवी की भी सम्मति ली तो देवी ने बड़ी खुशी के साथ सम्मति देदी और कहा पूज्यवर ! जितना आपका विहार अधिक क्षेत्रों में होगा उतना ही धर्म का प्रचार अधिक बढ़ेगा : आप खुशी से दक्षिण की ओर विहार करें । बस चतुर्मास समाप्त होते ही आप श्री ने अपने पांचसौ साधुओं के साथ दक्षिण की ओर विहार कर दिया। ___ उस समय के आचार्य अपने पास अधिक मुनियों को इस गर्ज से रखते थे कि जिस प्रान्त में आप विहार करते उस प्रान्त के छोटे बड़े सब ग्रामों में लोगों को उपदेश मिल जाता कारण, छोटे २ प्रामों में थोड़े २ साधुओं को भेज देते और बड़े नगरों में सब साधु शामिल हो जाते थे इससे एक तो गौचरी पानी की तकलीफ उठानी नहीं पड़ती और दूसरे ग्राम वालों को उपदेश भी मिलजाता। अतः उस समय के साथ जैनाचार्यों के कम से कम एक सौ साधु और ज्यादा से ज्यादा ५०० साधु तक भी रहते थे। उस समय जैनों की संख्या बहुत थी और भग्यशाली दीक्षा भी बहुत लेते थे। उन श्राचार्यों के त्याग.वैराग्य निस्पृहता एवं परोपकार का प्रभाव भी तो दुनियां पर बहुत पड़ता था । सूरिजी महाराज अपने ५०० शिष्यों के साथ यूथपति की भांति प्रामोग्राम विहार करते हुये एवं धर्मोपदेश देते हुये और धर्म जागृति करते हुये पधार रहे थे। जिस प्रदेश में श्रापश्री का पदार्पण होता वह प्रदेश धर्म से नवप्लव बन जाता था कारण आपश्री का उपदेश ही ऐसा था कि क्या राजा और क्या प्रजा धर्म के अनुगगी बन जाते थे कइ माहानुभाव संसार त्याग कर सूरिजी के चरण कमलों में दीक्षा लेकर आत्म कल्याण में लग जाते थे। सूरिजी का पहला चतुर्मास मानषेट राजधानी में हुआ यहाँ भी धर्म की खुब प्रभावना हुई बाद चतुर्मास के सूरिजी आस पास के प्रदेश में विहार कर बहुत अजैनों को जैन बनाये कहमुमुक्षुओं को दीक्षा दी तत्पश्वात् श्राप मदुरा में पधारे वहाँपर एक श्रमण सभा की गई जिसमें उप्त प्रान्त में विहार करने वाले सब मुनि एकत्र हुए थे। सूरिजी ने उन मुनियों के धर्म प्रचार कार्यों की खुब सहराना की और योग्य मुनियों को पदवियों प्रधान कर उनके उत्साह को बढ़ाया दूसरा चतुर्मास सूरिजी ने मथुरा में किया वहाँ पर श्रेष्टि यशदेव ने भगवान महावीर का बहुतर देहरी वाला मन्दिर बनाया उस की प्रतिष्टा करवाई उस सुअवसर पर बारह नर नारियों को भगवती जैन दीक्षा ली तत्पश्चात् वहाँ से विहार कर क्रमशः प्राम नगरों की स्पर्शना करते हुए सोपारपट्टन पधारे वहाँ के श्री संघ ने सूरिजी का बहुत समारोह से स्वागत किया सूरि जी का व्याख्यान हमेशा होता था श्रोताजन को बड़ा भारी आनन्द प्राता था श्रीसंघ ने सूरिजी से पतुमास की प्रार्थना की और लाभालाभ का कारण जान कर सूरिजी ने स्वीकार करली। सूरिजी के चतुर्मास से श्रीसंघ में धर्म जागृत अच्छी ई। कई शुभ कार्य हुये। पांच महिला और तीन श्रावकों ने सूरजी के पास दीक्षा ली। तदनन्तर श्रास पास के प्रदेश में भ्रमण करते हुए सूरिजी सौराष्ट्र में पधार कर गिरनार मण्डन भगवान नेमिनाथ की यात्रा की। वहाँ पर एक योगियों की जमात आई हुई थी उसमें एक तरुण साधु अच्छा लिखा पढ़ा था पर उसको अपने ज्ञान का बड़ा ही घमंड था यहाँ तक कि दूसरे विद्वानों को मुनि और तापस के आपस में संवाद ] ७९७ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy