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वि० सं० ७७८ से ८३७]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
कनोजिया की उन्नति कही । उन्नीस शाखा मानो सही ॥२९॥ मामड़झावक दूधेडिया कही। छजलाणी छलाणी सही ॥४६॥ लघ श्रेष्टि फिर इनकी जात । वर्धमानादि सोलह विख्यात । घोडावत हरिया कल्हाणी। गोखरू चोधरी नागड जाणी॥ चरड गोत कांकरिया जाणो । नव शाखा के काम पहचाणो॥ छोरिया सामड़ा लोडावड वीर । सूरिया मीठा नाहर गंभीर ॥४॥ सुंघड़ दूघड़ के संडासियासात।लुंग-चण्डालिया चार हुई जात। जड़िया आदि ओर विवेक । नागपुरिया तपा सूरि नेक ॥ गटिया गोत टीबांणी तीन । धर्म कर्म में रहते लीन ॥ दुर्व्यसन छोडाइ जैन बनाया। उनका उपकार सदा सकया ॥४॥ अठारह चार सब बाबीस मूल। पांच सौ पन्द्रह जाति हुई कूल। | वरदिया-वरडिया वंश जतावे । वरहुरिया शिलालेखषतावे ॥ उन्नति के यह हनाण । नामी पुरुष हुए प्रमाण ॥ | बांठिया कवाड थे बड़े ही वीर। शह-हरखावत साहस स धीर ॥४९॥ जन्होंने धार्मिक कार्य किये । धर्म काम में बह द्रव्य दिया। छत्रिया लालाणी ने रणधीर । ललवाणी हुए वडे गंभीर ॥ राज काज व्यापार से कही । कई हाँसी से जातिये बन गई। गान्धीराज वैदबलगोन्धी। जिन्होंने प्रीत प्रभु से सान्धी ॥५०॥ टोय हजार वर्ष निरन्तर । उपकेश-सरियों ने बराबर। खजानची और डफरिया जाण। बुरड संघी मनौत पहचान । अजैनों को जैन बनाते रहे। उनकी जाति की गिनती कोन कहे॥ पगारिया चौधी व सौलंकी। गुजरांणी कच्छोला जिनको १५१॥ भन्याचार्यों ने जैन बनाये। महाजन संघ के साथ मिलाये।। मरडेचा सोलेचा और खटोल। विनायकिया लुंकड सराफ अमोल जिससे संगठन बढ़ता गया। अलग रखने का नाम न लिया। अंचलिया मिन्नी ने गोलिया, ओस्तवाल गोठी दोलिया ॥५२॥ महाजन (संघ) समृद्धशाली भया। तन धन मन उतंग नभ गया। मादरेचा लोलेचा व भाला। गुरु प्याल पी लो मतवाला ॥ क्रिया भेद गच्छ पृथक हुआ तब श्रीगणेश पतन का हुआ॥ वृहद तपागच्छ के सूरि सधीर। जैन बनाये क्षत्री वीर ॥५३॥ चैत्य निश्रय अनिश्रय कृतदोय । गोष्टिक बमाये सुयोग्य को जोय गिरते नरक से स्वर्ग बताया। परम्परा हम चलते आये ॥ इसने गड़बड़ मचाइ पुरी। ममत्व भाव नहीं रही अधूरी ॥३७॥ उपकार तणो नहीं आवे पार। प्रतिदिन वन्दन वार हजार ॥५४॥ हाल इसका है विस्तार । केता लिखू नहीं आवे पार ।। गालहा आथ गोता बुरड जाणा । सुभद्रा बोहरा व सियाकाण ॥ वर्तमान जो प्रनलीत है वात। जिसका ही लिख द अवदाता ॥३८॥ कटारिया कोटेचा रत्नपुरा । नागदगोत मिटदिया वदशूरा ॥५॥ मतमतिर निकले नहीं मान । ले ले जातियां मांडी दुकान। घर गान्धी देवानन्द धरा । गोतम गोत ढोसी सोनोगरा ॥ जातियों ने उनका साथ दिया। उनके ही इतिहास का खूनकिया। कांटिया हरिया देदिया वीर । बोरेचा और श्रीमाल वडधीर ५६ तोड़ संगठन अपनी की थाप । कृतघ्नी बन किया वत्र पाप। अंचल गच्छ सूरीश्वर राया। भजनों को जैन बनाया । पतन दशा का कारण यही । अनुभव से सब जाणी सही ॥ उपकार आपका अपरम्पार । स्मरण करिये प्रत्युपकार ॥५॥ भवितव्यता टारी नहीं टरे। होन हार अन्यथा कोन करे। पगारिया बंब गंग कोठारी। गिरिभा गहलदा ओर है न्यारी ॥ अन्य गच्छ के कहलावे गोत्र । वंशावलियों से पाई जोत ॥ मलधार गच्छ के सूरि जाण । भावक बनाये जाति प्रमाण ॥५॥ मंडोत सुंघेचलने रातडिया। बोत्थरा बछावत व फोफलिया। सांढ सिबाल पुनमियाधार । सालेचा मेघाणी धनेरा सार । कोठारी कोटड़िया कपुरिया। घाडिवाल धाकदा सेठिया ॥ पूनमिया गच्छ के सूरिराय श्रावकबनाये करुणा लाय ॥५१॥ धूवगोता नागगोता वली नाहर धाकड़ और खीबसरा सार। रणधीरा कावडिया सुजाण,। ढहाश्रीपति तेलेरा मान ॥ मथुरा मिन्नी सोनेचा सुजाण । मकवाणा फितुरिया को जाण ॥ कोठारी नाणावाल गच्छ सार । सूरि कितो जबर उपकार ॥६०॥ खाबिया सुखियाने संखलेचा। डाकलिया पाडूगोता पोसालेचा। सुरांणा सांखला सोनी जिसा। भणवट मिटड़िया है किसा । बाकुलिया सहुचेती नागणा। खीवाणदिया बडेरा वापणा ॥ | ओस्तवाछ खटोड ओर नाहर । सरांणा गच्छ का परिवार ॥६॥ कोरंटगच्छ के ये श्रावक जाण । वंशावलियों में हैं प्रमाण । धर्मघोष सूरि का उपकार । नहीं भूले एक क्षण लगार ॥ नन्नप्रभसूरि आदि प्रभाविक । जिन्होंने बनाये जैनी भाविक ॥ धोखा-बोहरा डुगरवाल कही। पल्लीवाल गच्छ की कृपा सही गोहलाणि ने नवलखाण । भुतेदिया ये एक ही प्रमाण । धेड़िया कटोतिया गंग जाति। बंब और खाबड़िया साति ॥ पीपाड़ा हिरण ने गोगड़ा। शिशोदिया है इसमें बड़ा ॥४५॥ कदरसा गच्छ के सूरि महन्त । हम पर किया उपकार अनंत रूणीवाल ने वेगाणी दानी। हिंगड़ गिा ने रायस नी॥ भंडारी गुगलिया धारोला । चूतर दूधेडिया बोहरा झोला ।
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__ महाजन संघ के प्राचीन कवित
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