________________
वि० सं० ७७८-८३७ ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
नारायण कन्दडो सजधजे तु आयो बान्ध तलवार ॥ | मोटी रीत घरे मुहतो रे राज महतो गढ़ रहे ॥ १॥ खमे न ताप तुहारो खलदल श्रीमुखाड़े पाखर सैर । | स्वीवरगढ़ है कीली नेमावती अजमालौत रहे गढ़ सिवाणे । दीनी हाथ रायम दूजा सुरड़ा बातों तीका सम सैर ॥ रीत उज लग वले राजड़ो जगदुतण रहयो गढ़ जालौर ॥ २ ॥ कबिलातों ते खाय किलेघर भारथ भाजे लख भट्ट ।
+ +
+ रावण कंस स्मरियों रूठे तुठे दिन्हो भी जह ॥ कोट मीठो मित्र चन्द कीलाधर निसल हरे कियो जागीर नाम सु सिलहा सिन्धुडा सहित भाजे अरिया चसै भारथी। । ढाहा हरा सोनीगरा चूटा कुल तहारा सरीतो काम ॥३॥ पृथ्वी तणे सादार पातात हाथ तणो खग दोनों हथे।
+
सोजत अणे सीमी पाणे सोनीगरा जुड़ता आपा कवित
आद जुगादी मुरधर तगा मुइता मरण तणी मोतादि गले ज रह मेखली, डंड पर गृह बोजु जोगाती।
+ +
+ टोप पत्र शिर छत्र, अंग वभूत परमल ॥
जोधपुर के मूता पाताजी का गीत योग बहे जर कमर, जुड़बड़ लख जमातो।
परगटेक मस्तक कह हाथ पग। नजा सखण के नयन तीम । ध्यान ज्ञान गज तुरी, त्रिखड़ बंधेकटि ताती ॥
अजण तणामृत हुभा जाण खोलौ । जीव पखे वय हुओ जिम ॥ तिडिसिंघ भुयण लेवानो गति सत्र सहि करी जोड़े। नमी माथो वल पमणन हाले बीथका अंगसहु वस्यिाम । क्षत्री जोगीन्द रयण पालालरे खड़सिंह मोटो खत्ती॥ खेत कलो घर हंस खेलीया काडी शरीर सरै कोई काम ॥
खीवसर के वैदमुहता. भारण ते आहट अगनि सै आतस ।
धरम हित धन खरचियो पोपाशाह स.हवास । अति गारी घाट अनूप, घावडियों आरेण विविध पडै । | खीवसर में शत्रुकार दिया गयो काल जट नास ॥ भांजै घड़े घड़ि भाजै भूप गलणी छाड़ी वाड़ा ग्रह गाले ।
संचेतियों का कवित. गजसु दगर करी तेग ग्रही सारधार लोहार असंकित । दीपक बडा दरियाव चतुर अवसर नहीं चूके। सत्र शंके लै किया सही ॥
संचेती सर्व जाण मान मन हु नहीं मुके ॥ मोरक्ष पौकरणानाथा का कवित
दुर्ग बडो दरियाव भाव जस वास वाणिजे । कांते आवो रे दुकाल नाथा के दरबार में ।
साच वाच सुरगण सुजस संसार सुणिजे ॥ माम न पावेगा तु तो जा जा देशपार में ॥
मंगियोमोल संपजै समद कवियो कुरंद जकापणे। कुत कोरा दौरा लगत हुन विछोरा तेरा तौर में ।
राखवे हरख चक्रतल आद् सुसंवद आपणे ॥ अनाथ को सनाथ भयो नाथो उगत ही भौर में ।
+ संचेतीयों का कवित
संचेति सर्वजाण मभरी आच्छा मोढे । सायर अहदसिंह भले रंग रंग भणिजे ।
आदू को अनाथह कवियो दर्द तोड़े ॥ डावर दिल दिल दरियाव, कथन ताह बछो कहिजे।
कवियां करण कुबेर मेर पटंबर जिसो मग । दशरथ कु भावत वखत मोटो बखाणे ।
ओसवा उद्योत दिये दिन मान बडा दान ॥ सुहमकमा रूपसी इन्द्र सीखो अही नणे ॥
परथा अमट कवरेख पट समपै खेतमा जको । हर राज अने टाहो हुओजोर नाव किंधा जिया।
पखरो सुजसपुर पुहब यह जेता महार जको ॥ सातल भालो नध सहसी सिरहर आज संचेती॥
+ +
+
गीत तेजपाल संचेतीरो सोजत के वेद महता
सबल मूल सोलाग पति परगढ़ प्रदेशो । गढ सोजत रह्यो रायमल कोठ अण खोले पातो कहे। शाख सकल संतोष सात फल यह यशः केसो?
१३१२
महाजन संघ के प्राचीन कवित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org