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वि० सं० ७७८ से ८३७ ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
भवर जवाहर कया सहुँ; जो नजरि दिखाया ॥३०॥ कही देखिये ढेरिया, सोने दी भारी। कही देखिये ढेरिया रूपे अधिकारी ॥ कही देखीये ढेरीयां; कोमांच लगाये। पेसकसी जहांगीरनु, हीरानंद ल्याये ॥ ३१ ॥ संवत् सोलहै सतसठे; साका अतिकीया। मिहमानी पतिसाहती करिके जस लीया। x x + चुनि चुनि चोखी चुंनी; परम पुरांणे पंना। कुंदनकु देने करि लाये घन तावकमंना ॥ डाक लाल लाल लागी; कुतुब बस कुसांन । बिबधि बरण बने; बहुत बनाउके जान ॥ रुपके अनूप आछे; अबल के आभारन । देखे न सुने न कोइ असे राजा राउके ॥ बाउन मतंग माते नंदजु उचित कीने । जरसेती जरि दीने, अंकुस जरावके । दान के विधानको बखांन हु लो को लू करो। बीरानिमे हीरादेत हीरानंद जैहरी ॥ पाइये न जेते जवाहर जगमांझ ढूँढे । जे तो ढेर जोहरी जवाहरको लायो हे। कसबी कोमांच मुखमल जरबाफ साफ । झरोखा लो ग्रह लग मगमें बिछायो हे । जंपति जगन बिधि आनन बरणी जात । जहांगीर आये नंद आनंद सवायो हे॥ करसी छिटकी काहुँ कहुँ उबरा उनकी । पेसकसी पेखते पसीनां तन आयो हे ॥६॥
कोरपाल सोनपाल लोढा. सगर भस्थ जगि जगढ जावड भये । पोमराइ सारंग सुजस नाम धरणी ॥ सेबूंजे संघ चलायो सुधन सुखेत बायो । संघ पद पायो कवि कोटि किति बरणी ॥ लाहनि कडाहि ठाम ठाम दुक भांन कहि । भानंद मंगल घरि घरि गावे घरणी ॥ बस्तुपाक तेजपालं जैसे रेखचंद नंद । कोरपाल सोनपाल कीनी भलो करणी ॥१ कहि लखमण लोढा; दुनोकु दिखाइ देख । लछि को प्रमान जोपे एसो लाह लीजिये ॥
आँम संघपति कोउ संघजोपे कीयो चाहे । कोरपाल सोनगल को सो संघ कीजीये॥ सबल राइ बिभार; निबल थापना चार । बाधा राइ बंदि छोर अरि उत्साजको । अडेराय अवलंभ; खितपती रायखंभ । मंत्रीराय आरंभ; प्रगट सुभ साजको ॥ कबि कहि रूप भूप शइन मुकट मंनि त्यागी राइ तिलक; विरद गज बाजको ।। हयगय हेमदांन; भांन मंदकी समान । हिंदु सुरतणि सोनपाल रेखराजको ॥४॥ सैन बर आसमके, पैज पर पासनके निज दल रंजन, भंजन परदल को । मदमतवारे; विकरारे अति भारे भारे । कारे कारे बादर से वास वसु जलके। कबि कहि रुप नृप भुपति निके सिंगार । अति बडवार औरापति सम बलके ॥ रेखराजनंद कोरपाल सोनपाल चंद । हेतवंनि देत एसे हाथि निके हलके । ठाकुरसी मेहता [ श्रेष्टिगौत्र वैद्य साखा ] इला तेगबरियांडनिति बैद्यसि भाभरण । हुवे रिण तालुधर लग बलिठो । फोजहा जमरी उपरे फोरवे नाखियो ठाकुरे तुरी नीलो ॥१॥ लीयो भालममु ओझडे लोहडा; खांग मोटां सीरे खाग खाले । खेग अमराहरो भैलियो खेरवे; किलम घडसेविची बडो काले ॥ बड दान दीये मिलिया बडपात्रा; अरी हाथल रहचणो अबीह । ठाकुरसीह कहावे ठाकुर; लीह कहावे ठाकुरों ठाकुरसीह ॥३॥ जिणदासोत सुदिन दे जाणी; खगतलये सिर दीये खल । बोलावे राजिंद तणा ब्रद बोलावे जगि सरस बल ॥४॥ सीमाहरो सुदिन सुरातन मौहती ददू विधि निरभे मंण । जगि भूपाल लंकाल कह्यो जिणि बडोसु जोसी ब्राह्मण ॥५॥ बकसी जिण रांग बभीषण लंका घटबीसवीयो न्याय घणो । ग्रहे चढ़े तिणि देत तणे गढ, ताइ बकसो जिणदास तणो ॥६॥ राखे रह्या दुरग सह राक्षस, हेम उतरे नहिं हीये । ठाकुरसी जिता सहु ठेले, दिनहकै परवाह दीये ॥७॥ जेसलमेर पयंपे जांनो, काले जिसे न आयो कोय । गढा गाहरण गिरद मेवासण धर गिणे,
महाजन संघ के प्राचीन कवित
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