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________________ वि० सं० ७७८ से ८३७] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास जिणि देस अजियर ऊंट अरोगैर भाहर सदा लोक बसै ॥ जिणि दस मोमत्त होई हसती, भति अजाइब बंनि भरे । जिंणि देसि इसा गुण नारी जांग, भील गुंजाहल मांग३ मरै। नव निधि सिरोमणि तास निमंधि रोस भयंकर रंग मरे ॥ तिणि देस नरेसुरराम तुहारी, कीरति कोटि किलोल करै।। | हिब होइ जिये दिसि बाह हसी, झालण देइ न मदि झरे। जिणि देस सदा प्रति धेन सवारी, सत सवामण दूध श्रवै।। तिणि देस नरेसर राम तुहारि कीरति कोडि किलोल करे । जिणि देस पदमणि पीन पयोहर, खोले राखे काय खवै ॥ जिणि देसि बिह जण जोडी जांमे, एक बिहु घर वास हुवे । जिणि देस पिता बीण आपण जोइ, बिरहनि पंच भ्रतार बरे। सुखसेज सदा वृष पुरे संपति, साथ अवासे मांहि सुवै । तिणि देस नरे सुर राम तुहारी, कीरति कोटि किलौल करे ॥ जगदीस इसी किम कीधो जोडी आपण माहि न होइ अरे । जिणि देसि सलोभी मानव जाये, खाड गजा ले मौलि खणै। जिणि देस नरेसुर राम तुहारि कीरति कोडि किलोल करें । इम जाणि करे नर इसर बोहण, बंभणि एसा मंत्र भणै। हणवंत जीये दिसि मारे हाका, हेक पुरिषां देह हरै। बंदि छोडानेवाला करमचंद चोपडा. तिणि देस नरेसुर राम तुहारि कीरति कीढि किलोल करे ॥ | गरोहो मंडियो सुभट सावंत रुकाणा। जिणि देस उभै मण पितलि जोडै घाट अजाइब लोक घडै । पवन छतीसे बंदि हुधा इक अकथ कहाणा ॥ जिणि देसि निपंखी लोहणि ताला, जोनि जितनी काजि जडै ॥ ओसवाल भूपाल दाम दे बंदि छुडाइ । जिणि देस पदमणि पीता पाणी पावस दीसै पुठि परै।। करणी करतब करन, वदे सहु कोइ वडाई ॥ तिणि देस नरेसुर राम तुहारी कीरति कोटि किलोल करे ॥ समधर भणे ताल्हण सुतन, न्याइ बिहु पखि निरमला । जिणि देस कलेस न आवे जीवा, इक बाहै इक इस लुणे । | चोतोड भिडं ते चौपडे, करमचंद चाढी कला ॥ जिणि देस समुंद्री कांठल जाये. चंदाबदनी लाल चुणै ॥ नेतसी छाजेड. सोवंन जिण दिसि सीधु साट, मांना कोय न भुख मरे । । पवन जदि न परवरे, बाब बागो उत्तरधर । तिणि देस नरेसुर राम तुहारी कीरति कोटि किलोल करे ॥ धर मुरधर मानवो, भइ भेभंत तासभर ॥ जिणि देस दहैं जणह कण जीमण, भोजन भायां सीर भिले; मात तनुज परहरे विम ह मृगनेनी छारे । उण देस कहे जगनाथ उडीसा, मानव कोडि अनेक मिले ॥ उदर काजि आपने देस परदेस संभारे ॥ समरंगणि ठाइहणे मिल उपरि, साच पटंतर काज सरे । खित्त खीन दीन व्यापी खुधा नर नीसत सत छंडीया । तिणि देस नरेसुर राम तुहारी कोर त कोडि किलोल करे ॥ तिण द्योस साह जगमाल के, नेतसीह नर थंभीया । जिणि देस महेसन मेछ जुहारे जोति अगनि पाषाण जलै । अन्नदाता धर्मसी. बुद्धि एह अचंभ बिहुणे बालणि पारह मास अखुट बलै ॥ दीपक दीदा दिसे, प्रथी पदरा परमाणे । परताप सकति व बुडे पाणि, चावल होम जिगंन जरे । कडलनेर कडादि सिप त साची सुरताणे ॥ तिणि देस नरेसुर राम तुहारि कीरति कोडि किलोल करे ॥ इकतीसे से झति, इला असमै आधारी, जिणि देस इसा किम जंगम वासे. कान बधारि बिहाथ करे। धर गुजर धरमसी, जुगति दे अन्न जिवाडी॥ मुख आखि न दीसे मुछां आगे, मीच घणां दिन जाय मरे ॥ | खरड विरद खाटे खरां, अचल गंग सुभ उचरे । फल फुल अहार करे नबि फेरो, जोग अभ्यासन बिख जरे।। तिणि देस नरेसुर राम तुहारि, कीरति कोडि किलोल करे ॥ वर्धमा तणि वंसि बाचिये, सु तायागी सुरतांगरे ॥ जिणि देस उभै खटमास अंधारी सुर न दीसे पंथ सही। लाखों को जीवानेवाला संघवी नरहरदास. परवत्त अलंग महा बिहु पासै, बाट बियालै तेथि बही॥ साहिन को साहि पतिसाहि जहा गाजी राजी। निसि द्यौस न दीसे राह चलंतौ, धुनां दीपक हाथि धरे । | ह्र के रावरेकु सिरपाव xx दीये हे ॥ तिणि देस नरेसुरराम तुहारि कीरति कोडि किलोल करे ॥ जेतेक जिहांन मैं खवानी खांन सुलितान । करत वखांन सनमान बहु दीये हे । २उंट लेजावे एसे बडे अजगर. | कोटि जुग राज कीजे, नरहरदास भुवः ॥ १३०६ महाजन संघ के प्राचीन कवित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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