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आचार्य कक्कसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० ११७८-१२३७
पाणीयो वसु विधि निमियो, जिंहि तुल न तुल्या चक्रवे ॥ | जे रावल राजा रांण राजवी, कोडि कला मंडलिक मिली। किताइक क्रपण करप काजि नवि किणही आवे ।
दरबारि तुहारै रामनरेसुर. सेवै राज छतीस कुली. ॥ सुख मारग सेविए सूलसां मही भजावे ॥
भुमिर्या भुपतिक राह महा भड. ते दिसे दरबारि खडा। तु सारंग दूसरा, दूनी संकडे सधारी' ।
जे बंभण भट दिवाण, दरसंण, जगातिहुजिदार बढ़ा ॥ भड भोपति दगिया, अचल अखियात उबारी ॥
जे मंगण गीत करै कवि, मांहि महाजन मेल मिली। मति हीण मूल वर्प बढियो, छाया तर धर तौ धरा । दरबार तुहारै रामनरेसुर, सवै राज छतीस कुली ॥ भेरवां तरोवर तु पखे, पछितावे पंखी खरा ॥
जे मीर मीया सीकदारत खोजा, खांन मुम्मिक तुरुक तुचा । तुझ बीण असूर अनंत संक नवी कोइ माने ।
खांजांदा मलिक जु मेर मुकदम, ज्वांन पठाण मुगल बचा ॥ तुझ विण पात कुपात भला को भेव न जाणे ॥
जे जामलगाह बलोच हबसी, खेड खत्री जनु मेलमिली। तुझ विण बंदी बंदिजात, काबिल न बहोडे ।
दरबारि तुहारै रामनरेसुर, सवै राज छतीस कुली ॥ तुझ विग चाडी करे, चाडके नाक न फोडे ॥
कवित-राजकुली दरबारि, एक बीनती पठावै। भणि सीहू तुझ विणि दांन गौ, कछु न बात दीसे भली।
इक उभा वोलगै इक बड सेवा भावै ॥ भैरवा आव इक बार तु, इती अनीति अलवर चली ॥
छाजै वंसि छतीस एक जी जी करि जपै। प्रथम हमीर चहूबांन, बंस जिस हवो हमारी ।
मनि भावै सो करै एक थाप्या उथपै ॥ दुजे खीलची साहि, जास माफुर बजीरा ॥
अलवर साहि आलम थपियो, कहे जस कीरति भल । ती पीछे पेरोज, चढ बिमलु खां दल कुटयो ।
दरबारि रामडाहा तणौ, मोंड बंधी मागै महल ॥ बहू रांग भुगइ साहि महमुद अहुटयो
विचित्र देशोनुं वर्णन. अवसान अंति आयो नको, पातिसाह परगट करें। दिसि जिणि सूर उदै दरसायं, जिति लगन दीनि न्याj जायं । भेरू नरिंद संभारि भj. तुय जस करि कंकण बहुः ॥ दु अविचल जित लग ध्रु तारी, तितलग कीरति राम तुहारी ॥ उदधि बार लगि अखल, भगति परवरी हित ।
बडा पहाड जे थि भैवं का, लंका परे तथि पड लंका । ग्रह्या कोट पुतली असुर आग्रह्या अगम गति ॥
सौ मण दंत हस्ति मुख सारी, तितलग कीरति राम तुहारी॥ महा बेगम के बैर, लु लथबध गहि लुटत ।
जित लग पुरुष पंगु रन पाने, समझे नहीं तेथि परि साने । जो न हुति क्रम दसा, हीयो ततखिन फुनि फुटत ॥ अर्क तेज उतरे अवारी, तितलग कीरति राम तुहारी ॥ भेरू न उब.रत खगतलि, अतुर वचन अनदिन सह ।
जित लग रूप महातर जैसा, उन सेवंतां ग्लै अदेसा। उचरति उभय सरसुरि निसुनि, तब तुहि तीरथ कुण कहत ।
सो पर चंदन परउपगारी, तितलगि कीरति राम तुहारी॥ भेरूशाहका भाइ रामाशाहकी कीर्ति
साटिक-रामचंद्रो रामरुपस्य, रामरुपि मनोहरो। नेक निजरि करै साहिआलम, राम च्यारि पतिसाहा मालिम
रो स्वेण भये राम, संकरे देसांतरि गत ॥ बहतरि पाल मेदात वसावै राजकुलो निति सेवा आवै. ॥
दोहा-किति समंदां कंठलै, परभै कीयौ प्रवेस । छंद..
रांम सदाहा रूपके, न वै जपै नरेस ॥ सेवै कछवाहा, जोधक जादौ. भारथ जोगे भीछ भला।
छंद. निरवांग चौहाण चंदेल सोलंखी, देल्ह निसाण जिके दुजला ॥ जिणि देस नरेन जपै गुण तोरी, जीव भखे पापांण जरे । बड गुजर ठाकुर छेछर छीभर, गौड गहेल महेल मिली।
संपुर समंद वहंते सायर, टघण साम्है नीरति परै ॥ दरबारि तुहारे रामनरेसुर, सेवै राज छतीस कुली. । निणि देस में निख सकै नहि जाइ, घोडी दूधम थांण घुरै । जे तुंवर तार पंवारक सोढा, सांखला खीची सोनगरा।
तिणि देस नरेसुरराम तुहारी, कीरति कोडि किलोल करै ॥ राठौड जी के रायजादा रावत, स्वामि कामि संग्राम खडा ॥
जिणि देस अजाइब बात जपंता, पीछी मीढामानि वसै; * दुनियाके संकट में प्रबल आधार देनेव ला.
मेंढा जीतना वीछु
महाजन संघ के प्राचीन कवित Jain Education Inte, exal
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