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________________ आचार्य कक्कसूरि का जीवन [ओसवाल सं० ११७८-१७३७ ___ पहरामणी में पुरुषों के वस्त्रों के साथ पच्चीस पच्चीस तोले की कंठियाँ बहिनों को चूड़े प्रदान किये । १५५-सकल तीर्थों की यात्रा की संघपूना कर पाँच २ मुहरे पहरामणी में दी । १५६- चार यज्ञ कर संघ को घर आंगणे बुलाकर तिलक कर पहरामणी दी पुष्कल द्रव्य व्यय किया। १५७-दुकाल में आये हुये भूख पीड़ित मनुष्य पशुओं का पालन किया भ. आदीश्वर का विशाल मंदिर बनाया तीर्थों की यात्रा कर सघ पूजा की एक एक मुहर लहण में दी। १५८-सम्मेत शिखरजी की यात्रार्थ संघ निकाल पूर्व की सब यात्रा की आते जाते सर्वत्र लहण दी स्वामि___वार सत्य कर संघ को पहरामही में पुष्कल द्रव्य दिया याचकों को भी दान दिया। १५९-आपने निराधार सानियों के लिये एवं जैनधर्म के प्रचार के लिये बीस करोड़ द्रव्य व्यय कर जैन धर्म की सेवा की सात यज्ञ कर सघ पूजा की पुष्कल द्रव्य व्यय किया। १६:-सातवार चौरासी घर प्रांगणे बुलई सात मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करवाई और संघ पूजा कर एक एक सुवर्ण सुपारी प्रभावना में दी। १६१ - अापने विदेश से एक पन्ना लाकर ११ अंगुल की मूर्ति बनाकर घर देरासर में प्रतिष्ठा करवाई तथा सघ पूजा कर वस्त्राभूषण वगैरह पहरामणी में दिये । १६२-आपको पारस प्राप्त हुआ था । लोहे का सोना बनाकर धर्म कार्य में व्यय किया एवं दुष्कालादि में जनसेवार्थ भी पुष्कल द्रव्य व्यय किया तीर्थ यात्रार्थ संघ निकाला शत्रुजय पर नया मंदिर बनाया स्वर्णमय ध्वजा दंड चढ़ाया और संघ पूजा कर पच्चीस २ मुहरें वस्त्र लड्ड, पहरामणी में दिये । १६३-तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाला संघ को पहराणी दी जिसमें सोने की डिबियें दी। १६४ - चौरासी न्याति को अपने घर प्रांगणे बुलवा कर पांच पकवान भोजन करवा कर सुंदर वस्त्र पोशाक ___ की पहरामणी में दी। १६५ -दुकाल में बड़ी उदारतापे स्थान स्थान पर शत्रुकार मंडावा दिये तथा तीर्थ यात्रा कर संघपूजा की। ६६६-सात बड़े यज्ञ किये साधर्मियों को पहरामणी दी। याचकों को मनोवांछित दान दिया। १६७-आपके विदेश व्यापार से अनाशय तेजमदुरी हाथ लग गई जिससे पुष्कल सुवर्ण बना कर चार मंदिर चार तालाब चार यज्ञ और चार वार तीर्थों के संब निकाल कर सर्व तीर्थों की यात्रा की संघ पूजा की पांच २ मुहरें पहरावणी में दी। १६८ -श्रीशत्रुजय गिरनागदि तीथों का संघ निकाला संघपूजा कर पहरामणी दी। १६ -चार बड़े यज्ञ किये ८४ चार वार घर अंगण बुलाई पहरामणी दी। १७०-सम्मेतशिखरजो की यात्राथ संघ निकाला जाते आते सर्वत्र लहण दी स्वामिवात्सल्य कर संघ को पहरामणी दी और याचकों को दान दिया। १७२-शत्रुजय गिरनार की यात्रार्थ सघ निकाला दुकाल में उदारता व संघ पूजा कर पहरामणी दी । १७१-शत्रुजय गिरनार का संघ ७६ लक्ष द्रव्य में संघमाल सघ को पहरामणो । १७३-सात वार वावनी, ३ बार चौगली बुलबा कर भोजन के साथ पहरामणी । १७४-सात बड़े यज्ञ किये जैन मंदिर बनवा कर स्वर्ण प्रतिमा स्थापन की। १७५-शजय गिरनार का संघ निकाल एक एक सुवर्ण मुद्रिका पहरामणी में दी। ७. ॥ शाहों की ख्याति १३०ibrary.org Jain Education international For Private & Personal Use Only
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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